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Rusen Kumar Rusen Kumar Rusen Kumar
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पहले मुर्गी आई या पहले अंडा? – एक नई अवधारणा

प्रकृति में कोई भी चीज़ अकेले अस्तित्व में नहीं है; हर तत्व एक दूसरे से जुड़ा हुआ है और एक-दूसरे के अस्तित्व के लिए आवश्यक है।

रुसेन कुमार Rusen Kumar by रुसेन कुमार Rusen Kumar
September 21, 2024
in विचार शक्ति
Reading Time: 2 mins read
रुसेन कुमार

rusen kumar photo

रुसेन कुमार द्वारा

“पहले मुर्गी आई या पहले अंडा। पहले वृक्ष आया या पहले बीज आया। पहले माँ आई या संतान। ” इस प्रश्न को बहुत जटिल माना जाता है। हमारे देश में, इस प्रश्न को जनसामान्य में अक्सर पूछा जाता है। कई बार इसे ऊँचे दर्जों की परीक्षाओं में भी पूछा जाता है। इस बात को इसलिए भी पूछा जाता है कि ताकि व्यक्ति की बुद्धिमत्ता का परीक्षण हो सके। इसलिए भी कि व्यक्ति इन प्रश्नों का जवाब कितना तर्कसंगत, कितने विकसित वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देता है।  इन प्रश्नों के तह तक पहुँचना वास्तव में बहुत कठिन काम है। 


आइए, इसका अनुसंधान करने का प्रयास करता हूँ ताकि इस जटिल विषय को आपको समझने में मदद मिलेगी।

पहले मुर्गी आई या पहले अंडा, पहले वृक्ष आया या पहले बीज, और पहले माँ आई या उसकी संतान – ये सवाल सदियों से मानव विचारधारा का हिस्सा रहे हैं। यह सवाल महज एक दार्शनिक विचार-विमर्श नहीं, बल्कि हमारी सोच और तर्क की दिशा को परखने का एक ज़रिया भी हो सकता है। यह प्रश्न जटिल लग सकता है, लेकिन इसे समझने के लिए हमें प्रकृति और सृष्टि की प्रक्रिया को गहराई से देखना होगा।

मेरे विचार से यह प्राकृतिक मामला है, राजनीतिक या सामाजिक मसला नहीं है। इन बातों को प्राकृतिक नियमों के आलोक में देखना ज्यादा प्रासंगिक होगा।

समन्वय का महत्व

प्रकृति के नियम अद्वितीय हैं, और उनका आधार समन्वय और द्वैतवाद है। दुनिया समन्वय से चलती है। यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि हर चीज़, हर क्रिया और हर प्रक्रिया आपस में जुड़ी हुई है। इसे हम एक साइकिल के पहिये के उदाहरण से समझ सकते हैं। साइकिल का पहिया तभी काम करता है जब उसके सभी भाग आपस में समन्वयित होकर चलें। अगर पहिये में थोड़ा भी समन्वय भंग हो जाए, तो उसे खराब माना जाता है। ठीक इसी तरह, जीवन में भी हर चीज़ एक-दूसरे से जुड़ी होती है। यह समन्वय प्रकृति में भी दिखाई देता है, जहाँ हर चीज़ एक उद्देश्य के लिए एक साथ काम करती है।

युग्म की अवधारणा

किसी भी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए युग्म का होना आवश्यक है। जैसे स्त्री और पुरुष के मिलन से संतान उत्पन्न होती है, वैसे ही प्रकृति में हर चीज़ का विकास युग्म की वजह से होता है। बिना इस समन्वय के कोई भी चीज़ आगे नहीं बढ़ सकती। यह प्राकृतिक नियम है, और इसे हम हर जगह देख सकते हैं – चाहे वह अंडा और मुर्गी का संबंध हो, या बीज और वृक्ष का। प्रकृति में कुछ भी अकेला नहीं चलता। हर चीज़ एक दूसरे से जुड़ी हुई है और एक दूसरे के अस्तित्व के लिए आवश्यक है।

दो वस्तुओं के बीच रगड़ से गति या ऊर्जा पैदा हो सकती है। यह दर्शाता है कि प्रकृति में विकास और प्रगति के लिए युग्मों का होना कितना ज़रूरी है।

प्रकृति में द्वैतवाद

प्रकृति में द्वैत है। यहाँ परस्पर संबंधों का महत्व है, और यही युग्मीकरण प्रकृति का आधार है। हम इसे प्रकृति की एकल दिशा में नहीं देख सकते, क्योंकि यहाँ “एकला चलो” की अवधारणा लागू नहीं होती। एक वस्तु का होना तभी सार्थक है जब वह अपने समकक्ष से जुड़ी हो। जैसे बीज का महत्व तभी है जब वह वृक्ष को जन्म दे, और वृक्ष का अस्तित्व भी बीज के बिना अधूरा है। इस प्रकार से, बीज और वृक्ष का युग्म ही वास्तविकता है।

पानी और पात्र का उदाहरण

यह बात समझने के लिए हम एक साधारण उदाहरण ले सकते हैं – पानी और गिलास का। पानी को पीने के लिए उसे गिलास में डालना पड़ता है। पानी और पात्र का यह समन्वय अधिक सार्थक और व्यवस्थित होता है। अगर गिलास न हो, तो पानी पीना मुश्किल हो जाएगा। इसी तरह, जीवन के हर पहलू में यह समन्वय महत्वपूर्ण है।

माँ और संतान का संबंध

अब अगर हम माँ और संतान के संबंध को देखें, तो यह स्पष्ट होता है कि न तो माँ पहले आई और न ही संतान। यह दोनों एक युग्म का हिस्सा हैं। पहले स्त्री-पुरुष का संपर्क हुआ, वे युग्म हुए। फिर उन्होंने संतान के बीज बोए। संतान के गर्भ आते ही पिता की भूमिका गौड़ हो जाता ही। और माँ और संतान का एक नया संबंध बनता है। माँ का अस्तित्व संतान के बिना अधूरा है और संतान का अस्तित्व माँ के बिना संभव नहीं। यह युग्म ही वास्तविकता है। इस प्रकार, जीवन में कोई भी चीज़ स्थायी नहीं होती; केवल युग्मीकरण और समन्वय ही स्थायी है। एक युग्म से दूसरा युग्म बनता है, और यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है।

मुर्गी और अंडे का संबंध

मुर्गी की सार्थकता उसके अंडा देने की क्षमता से परिभाषित होती है, और अंडे की सार्थकता उसमें जीवनी शक्ति के विकास से होती है। यह परस्पर निर्भरता ही दोनों के अस्तित्व को मायने देती है। अगर अंडा निष्क्रिय हो जाए और जीवन को जन्म न दे सके, तो उसका कोई महत्व नहीं होगा। इसी प्रकार से, मुर्गी का अस्तित्व भी उसके अंडे देने की क्षमता से जुड़ा है।

प्रकृति में अद्वैतवाद नहीं है, बल्कि हर चीज़ एक दूसरे के विपरीत और पूरक है। बीज का उद्देश्य वृक्ष पैदा करना है, और अंडे का उद्देश्य जीवन को विकसित करना है। इसी तरह, मुर्गी का उद्देश्य अंडे देना है। यह द्वैतवाद ही प्रकृति को संतुलित और गतिशील बनाए रखता है।

प्रकृति में एकल विकास नहीं

यह बात समझना जरूरी है कि प्रकृति में एकल विकास नहीं होता। प्रकृति अकेले में आगे नहीं बढ़ती, यहाँ परस्पर निर्भरता ही विकास का आधार है। यह लंगड़ापन नहीं है, बल्कि यह विकास का प्राकृतिक तरीका है। इसी कारण से, यह कहना कि पहले कौन आया – मुर्गी या अंडा, या माँ या संतान – एक निरर्थक प्रश्न है। असल में, दोनों का एक-दूसरे से संबंध ही उन्हें महत्वपूर्ण बनाता है।

सार बातें

इन सभी सवालों का मूल यही है कि जीवन में समन्वय और युग्मीकरण ही सच्चाई है। कोई भी चीज़ अकेले नहीं हो सकती, और किसी एक का अस्तित्व तभी सार्थक होता है जब वह दूसरे से जुड़ी हो। प्रकृति में सब कुछ द्वैत पर आधारित है, और यह द्वैत ही हमारे अस्तित्व की नींव है।

(रुसेन कुमार)

मेरे इस लेख को गहराई समझने के लिए इसे भी पढ़ेंः

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Source: रुसेन कुमार
Via: रुसेन कुमार
Tags: पहले मुर्गी आई या पहले अंडा?पहले वृक्ष आया या पहले बीज आया।रुसेन कुमार
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रुसेन कुमार Rusen Kumar

रुसेन कुमार Rusen Kumar

रुसेन कुमार, अग्रणी पत्रकार, कवि, लेखक और सामाजिक उद्यमी हैं। छत्तीसगढ़ में निवासरत हैं। सामाजिक-आर्थिक, राजनीतिक विषयों के चिंतन पर उनके सैकड़ों आलेख और 15 पुस्तकें प्रकाशित हैं। छत्तीसगढ़ में निवासरत हैं।

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रुसेन कुमार प्रतिभाशाली पत्रकार, लेखक एवं सामाजिक उद्यमी हैं।

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