चाहे गाँव हो या शहर, गौरैया न केवल हमारे आँगन, गैलरी और बालकनी की शोभा बढ़ाती है, बल्कि यह हमारे पर्यावरण की एक महत्वपूर्ण कड़ी भी है। गौरैया एक ऐसी चिड़िया है जो अपनी मधुर चहचहाहट से हमारे दिन की शुरुआत को और भी सुहाना बना देती है। यह छोटी सी चिड़िया प्रकृति के साथ हमारे संबंध को भी दर्शाती है, और इसकी उपस्थिति हमें यह याद दिलाती है कि हमारा प्राकृतिक पर्यावरण कितना मूल्यवान है।
रायपुर में घरेलू गौरैया निःसंदेह ही कम दिखाई पड़ती है, जबकि यह सुखद है कि नवीन कालोनियाँ और सुव्यवस्थित ऊँचे रहवासी टावर गौरैया के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। ऐसा हो सके इसके लिए सामूहिक प्रयास और जागरूकता की आवश्यकता होगी।
खेलती गौरैया अच्छी लगती है
फुदकती गौरैया भली लगती है
चहकती गौरैया मधुर लगती है
उड़ती गौरैया मोह लेती है
घरेलू गौरैया चिड़िया हमारे छत्तीसगढ़ की ग्रामीण संस्कृति की प्रतिनिधि है। यह हमारे अच्छे पर्यावरण का प्रतीक चिन्ह है। गौरैया और मनुष्य के मध्य गहरी मित्रता है। ऐसा समझा जाता है कि जबसे हमने कृषि करना सीखा है, यह चिड़िया हमारे साथ आ गई और हमारे साथ जीना सीख लिया। यह चावल के दाने खाती है, धान को फोकल कर खाती है। यह बात गौरैया और मनुष्य के हजारों वर्षों से पुराने साथी होने का प्रमाण है। हमारे छत्तीसगढ़ में जहाँ भी घर होगा, लोग होंगे, गाँव होगा, वहाँ गौरैया अवश्य पाई जाएगी।
यह जाहिर-सी बात है कि हम जैसे-जैसे कृषि से दूर होते जाएँगे, उसी के समानान्तर यह चिड़िया भी हमसे दूर होती जाएगी। हम जैसे-जैसे वातावरण – अन्न, जल, वायु आदि को दूषित करते जाएँगे, यह चिड़िया भी हमसे रूठकर चली जाएगी।
गाँव हो या शहर गौरैया हमारे आंगन की, गैलरी की, बालकनी की शोभा बढ़ाती है। यह हमारी लोकसंस्कृति का सहचरी पक्षी है। गौरैया की चहचहाट के बिना घर-आंगन कितना सूना-सूना लगेगा। 30-40 ग्राम की यह नन्ही चिड़िया हमारे लिए कितने अधिक महत्व की है। आखिर ऐसा क्या है इस नन्हीं-सी जान में, जिसे देखना, उसके बारे में लिखना, पढ़ना, आनंदित करता है।
यह केवल चिड़िया ही नहीं बल्कि हमारी सामाजिक संस्कृति के उत्थान और पतन का गवाह भी बनी हुई है। वह इसलिए क्योंकि पिछले कुछ दशकों में इस लघु आकार के पक्षी की संख्या में लगातार कमी अनुभव किया जा रहा है।
निःसंहेद ही छत्तीसगढ़ के गाँवों में गौरैया की संख्या में कम देखी जा रही है। तो क्या शहरों में या सघन आबादी वाले क्षेत्रों में भी हमारी गौरैया की संख्या में कमी आई है। यह एक विचारणीय प्रश्न है।
यह रिपोर्ट रायपुर शहर में गौरैया के संरक्षण की पहल के संदर्भ में केंद्रित है।
गौरैया चिड़िया घोंसले बनाकर रहती है। सुरक्षित प्रजनन के लिए घोंसले उपयुक्त और सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराते हैं। रायपुर की नवनिर्मित कालोनियों में गौरैया नजर आती है, यह सुखद बात है। निःसंदेह ही इनकी संख्या अधिक नहीं है, लेकिन कालोनियों का सुखद वातावरण इनके प्रजनन के लिए उचित वातावरण उपलब्ध करा रहा है। गौरैया की संख्या बढ़ सके इसके लिए घरेलू वातावरण, सुलभ आहार और पेड़-पौधों की उपलब्धता का संतुलन चाहिए।
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गौरैया के लिए उपयुक्त कालोनियाँ
नया राज्य बनने के बाद रायपुर के राजधानी बनने के बाद यहाँ की आबादी तेजी से बढ़ी है। नई कालोनियाँ विकसित हुई हैँ। रायपुर का दायरा बहुत विस्तृत हो गया है। रायपुर चारों तरफ फैल गया है। शहर के भीतर ही कई मानव निर्मित सुंदर बस्तियाँ विकसित हो गई हैं। इन कालोनियोँ की विशेषता यह है कि इसे प्रथम दृष्टया देखने पर अत्यंत सुव्यवस्थित नजर आती हैं। सबसे सुखद बात यह है कि इन कलोनियों में पेड़-पौधों के लिए पर्याप्त जगह रखी गई हैं। कुछ कालनियाँ शहर से दूर ग्रामीण वातावरण में भी विकसित की गई हैं।
कुछ विकसित कालोनियोँ का भ्रमण करने के उपरान्त यह निष्कर्ष निकला कि ये कालोनियाँ शहरी और सघन आबादी वाले क्षेत्र में घरेलू गौरैया के संरक्षण में बड़ी मददगार साबित हो सकती हैं।
उदाहरण स्वरूप मोवा-सड्डू क्षेत्र के अविनाश कैपिटल कालोनी में गौरैया दिखाई पड़ती है। लेकिन इनकी संख्या अधिक नहीं है। इस कालोनी में 30 से अधिक गौरैया के जोड़े देखे गए हैं।
नर गौरैया अत्यंत स्वस्थ्य और फुर्तीले नजर आते हैं। मादा गौरैया अत्यंत मोहक और सुंदर नजर आती हैं।
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बेसमेंटः गौरैया के लिए स्वर्ग
गौरैया को शीतल छायादार स्थान पसंद आती है। उदाहरण के तौर पर अविनाश कैपिटल होम्स में स्थित ऊँचे टावर के बेसमेंट घरेलू गौरैया के लिए अत्यंत अनुकूल वातावरण निर्मित कर रहे हैं। ऊँची इमारतों के बेसमेंट में शीतलता रहती है। खुली जगह भी अधिक रहती है। ये स्थान गौरैया के फुदकने के लिए अत्यंत उपयुक्त वातावरण निर्मित करते हैं। बेसटमें गौरैया को अक्सर फुदकते देखा जा सकता है।
![घरेलू गौरैया चिड़िया हमारे छत्तीसगढ़ की ग्रामीण संस्कृति की प्रतिनिधि है। यह हमारे अच्छे पर्यावरण का प्रतीक चिन्ह है। गौरैया और मनुष्य के मध्य गहरी मित्रता है। ऐसा समझा जाता है कि जबसे हमने कृषि करना सीखा है, यह चिड़िया हमारे साथ आ गई और हमारे साथ जीना सीख लिया। यह चावल के दाने खाती है, धान को फोकल कर खाती है। यह बात गौरैया और मनुष्य के हजारों वर्षों से पुराने साथी होने का प्रमाण है। हमारे छत्तीसगढ़ में जहाँ भी घर होगा, लोग होंगे, गाँव होगा, वहाँ गौरैया अवश्य पाई जाएगी।](https://rusenkumar.com/wp-content/uploads/2023/11/Sparrow-seen-in-Raipur-photo-clicked-by-Rusen-Kumar.jpg)
![घरेलू गौरैया चिड़िया हमारे छत्तीसगढ़ की ग्रामीण संस्कृति की प्रतिनिधि है। यह हमारे अच्छे पर्यावरण का प्रतीक चिन्ह है। गौरैया और मनुष्य के मध्य गहरी मित्रता है। ऐसा समझा जाता है कि जबसे हमने कृषि करना सीखा है, यह चिड़िया हमारे साथ आ गई और हमारे साथ जीना सीख लिया। यह चावल के दाने खाती है, धान को फोकल कर खाती है। यह बात गौरैया और मनुष्य के हजारों वर्षों से पुराने साथी होने का प्रमाण है। हमारे छत्तीसगढ़ में जहाँ भी घर होगा, लोग होंगे, गाँव होगा, वहाँ गौरैया अवश्य पाई जाएगी।](https://rusenkumar.com/wp-content/uploads/2023/11/Sparrow-seen-in-Raipur-Photo-taked-by-Rusen-Kumar.jpg)
बेसमेंट में पानी पीता हुआ नर गौरैया।
![घरेलू गौरैया चिड़िया हमारे छत्तीसगढ़ की ग्रामीण संस्कृति की प्रतिनिधि है। यह हमारे अच्छे पर्यावरण का प्रतीक चिन्ह है। गौरैया और मनुष्य के मध्य गहरी मित्रता है। ऐसा समझा जाता है कि जबसे हमने कृषि करना सीखा है, यह चिड़िया हमारे साथ आ गई और हमारे साथ जीना सीख लिया। यह चावल के दाने खाती है, धान को फोकल कर खाती है। यह बात गौरैया और मनुष्य के हजारों वर्षों से पुराने साथी होने का प्रमाण है। हमारे छत्तीसगढ़ में जहाँ भी घर होगा, लोग होंगे, गाँव होगा, वहाँ गौरैया अवश्य पाई जाएगी।](https://rusenkumar.com/wp-content/uploads/2023/11/Happy-Sparrow-in-Raipur.jpg)
मोवा स्थित अविनाश कैपिटल होम्स फेस-2 में नर गौरैया अपनी चोंच पर कीड़े को पकड़े हुए। (29 सितंबर 2022)
गौरैया का संरक्षण करना न केवल इसे बचाने के लिए है, बल्कि यह हमारी जिम्मेदारी भी है कि हम पर्यावरण को संतुलित रखें और भविष्य की पीढ़ियों को भी स्वच्छ और हरित पर्यावरण प्रदान करें।
![घरेलू गौरैया चिड़िया हमारे छत्तीसगढ़ की ग्रामीण संस्कृति की प्रतिनिधि है। यह हमारे अच्छे पर्यावरण का प्रतीक चिन्ह है। गौरैया और मनुष्य के मध्य गहरी मित्रता है। ऐसा समझा जाता है कि जबसे हमने कृषि करना सीखा है, यह चिड़िया हमारे साथ आ गई और हमारे साथ जीना सीख लिया। यह चावल के दाने खाती है, धान को फोकल कर खाती है। यह बात गौरैया और मनुष्य के हजारों वर्षों से पुराने साथी होने का प्रमाण है। हमारे छत्तीसगढ़ में जहाँ भी घर होगा, लोग होंगे, गाँव होगा, वहाँ गौरैया अवश्य पाई जाएगी।](https://rusenkumar.com/wp-content/uploads/2023/11/Sparrow-playing-in-Raipur.jpg)
बेसमेंट की फर्श पर फुदकती गौरैया।
पाइप के बीच में घोंसले
बेसमेंट में घुमावदार पाइपों के बीच में कुछ जगह बच जाती हैं। पाइपों के मुड़ाव वाली जगहों को गौरैया अपना घोंसला बना रही हैं। ये स्थान गौरैया के प्रजनन के लिए अत्यंत उपयुक्त नजर जाते हैं। प्रजनन के लिए अण्डों को सुरक्षित घोंसलों की आवश्यकता होती है।
घोंसला सबसे बड़ी समस्या है
गौरैया बड़ी चतुराई से अपने घोंसले के लिए जगह का चुनाव करती हैं। यह अक्सर सुरक्षित स्थान को ही घोंसले के लिए तय करती है।
घोंसला बनाने के लिए गौरैया को घास-फूस और तिनकों की आवश्यकता पड़ती है। कालोनी में रहने वाली गौरैये के लिए घोंसला बनाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। कम घोंसले दिखाई पड़ना सचमुच में चिंता का विषय है।
कृत्रिम घोंसले की भूमिका
गौरैया प्रजनन के लिए घर बनाती है। कालोनियों में गौरैया के घोंसले दिखाई पड़ता प्रजनन के लिए अच्छे वातावरण के संकेत देते हैं। लेकिन घोंसले कम ही नजर आते हैं। गौरैया के इसके संरक्षण के लिए कृत्रिम घोंसले को जगह-जगह टाँगना अत्यंत कारगर सिद्ध हो सकता है।
![घरेलू गौरैया चिड़िया हमारे छत्तीसगढ़ की ग्रामीण संस्कृति की प्रतिनिधि है। यह हमारे अच्छे पर्यावरण का प्रतीक चिन्ह है। गौरैया और मनुष्य के मध्य गहरी मित्रता है। ऐसा समझा जाता है कि जबसे हमने कृषि करना सीखा है, यह चिड़िया हमारे साथ आ गई और हमारे साथ जीना सीख लिया। यह चावल के दाने खाती है, धान को फोकल कर खाती है। यह बात गौरैया और मनुष्य के हजारों वर्षों से पुराने साथी होने का प्रमाण है। हमारे छत्तीसगढ़ में जहाँ भी घर होगा, लोग होंगे, गाँव होगा, वहाँ गौरैया अवश्य पाई जाएगी।](https://rusenkumar.com/wp-content/uploads/2023/11/Home-of-Bird-Sparrow.jpg)
बेसमेंट में पाइपों के मोड़ के बीच में गौरैया का घोंसला।
![घरेलू गौरैया चिड़िया हमारे छत्तीसगढ़ की ग्रामीण संस्कृति की प्रतिनिधि है। यह हमारे अच्छे पर्यावरण का प्रतीक चिन्ह है। गौरैया और मनुष्य के मध्य गहरी मित्रता है। ऐसा समझा जाता है कि जबसे हमने कृषि करना सीखा है, यह चिड़िया हमारे साथ आ गई और हमारे साथ जीना सीख लिया। यह चावल के दाने खाती है, धान को फोकल कर खाती है। यह बात गौरैया और मनुष्य के हजारों वर्षों से पुराने साथी होने का प्रमाण है। हमारे छत्तीसगढ़ में जहाँ भी घर होगा, लोग होंगे, गाँव होगा, वहाँ गौरैया अवश्य पाई जाएगी।](https://rusenkumar.com/wp-content/uploads/2023/11/Sparrow-Home-in-Raipur-Avinash-Capital-Home2-1024x576.jpg)
बेसमेंट में पाइपों के मोड़ के बीच में अपने घोंसले के पास नर गौरैया।
फुदकने के लिए जगह
गौरैया को लटककर खेलना पसंद है। बेसमेंट में पाइप, लटकते तार, साइकिल और मोटर साइकिल के हैंडल और कार की छत पर गौरैया अक्सर खेलती, लटकती और हचकती नजर आती है। पाइप के बीच में थोड़ी सी जगह पर गौरैया बैठकर आराम करती है।
![घरेलू गौरैया चिड़िया हमारे छत्तीसगढ़ की ग्रामीण संस्कृति की प्रतिनिधि है। यह हमारे अच्छे पर्यावरण का प्रतीक चिन्ह है। गौरैया और मनुष्य के मध्य गहरी मित्रता है। ऐसा समझा जाता है कि जबसे हमने कृषि करना सीखा है, यह चिड़िया हमारे साथ आ गई और हमारे साथ जीना सीख लिया। यह चावल के दाने खाती है, धान को फोकल कर खाती है। यह बात गौरैया और मनुष्य के हजारों वर्षों से पुराने साथी होने का प्रमाण है। हमारे छत्तीसगढ़ में जहाँ भी घर होगा, लोग होंगे, गाँव होगा, वहाँ गौरैया अवश्य पाई जाएगी।](https://rusenkumar.com/wp-content/uploads/2023/11/Sparrow-Home-in-Raipur-Avinash-Capital-Home2-Playing.jpg)
![घरेलू गौरैया चिड़िया हमारे छत्तीसगढ़ की ग्रामीण संस्कृति की प्रतिनिधि है। यह हमारे अच्छे पर्यावरण का प्रतीक चिन्ह है। गौरैया और मनुष्य के मध्य गहरी मित्रता है। ऐसा समझा जाता है कि जबसे हमने कृषि करना सीखा है, यह चिड़िया हमारे साथ आ गई और हमारे साथ जीना सीख लिया। यह चावल के दाने खाती है, धान को फोकल कर खाती है। यह बात गौरैया और मनुष्य के हजारों वर्षों से पुराने साथी होने का प्रमाण है। हमारे छत्तीसगढ़ में जहाँ भी घर होगा, लोग होंगे, गाँव होगा, वहाँ गौरैया अवश्य पाई जाएगी।](https://rusenkumar.com/wp-content/uploads/2023/11/Sparrow-Home-in-Raipur-Avinash-Capital-Home2-Playing-by-Rusen-Kumar.jpg)
![कालोनियों के गार्डन में दाना तलाशते हुए गौरैये को अक्सर देखा जा सकता है। यह पक्षी दाना और सूक्ष्म कीट को खाता है। कालोनियाँ के बीच में निर्मित गार्डन में दाने, घास और सूक्ष्म कीड़े पनपते रहते हैं, जो उनकी अनुकूल आहार श्रृंखला के लिए अत्यंत उपयुक्त स्थान हैं। नीचे दिखाई देने वाली गौरैया को लेखक ने गार्डन में कई मिनटों तक घूम-घूम कर अपने लिए भोजन तलाशते हुए देखा है।](https://rusenkumar.com/wp-content/uploads/2023/11/Sparrow-in-Car-Mirror-Rusen-Kumar-730x1024.jpg)
मोटरसाइकिल का आइना
जैसे हम लोगों को आइना देखना पसंद है, वैसे ही गौरेया पक्षी को अपना चेहरा निहारना पसंद है। मोटरसाइकिल और कार के आइने के पास जाकर उसमें अपने आपको निहारना गौरैया को पसंद है। बेसमेंट में खड़ी गाड़ियाँ गौरैया के खेलने और मनोरंज के लिए उपयुक्त वातावरण निर्मित करते हैं।
गार्डन में दाना तलाशती गौरैया
कालोनियों के गार्डन में दाना तलाशते हुए गौरैये को अक्सर देखा जा सकता है। यह पक्षी दाना और सूक्ष्म कीट को खाता है। कालोनियाँ के बीच में निर्मित गार्डन में दाने, घास और सूक्ष्म कीड़े पनपते रहते हैं, जो उनकी अनुकूल आहार श्रृंखला के लिए अत्यंत उपयुक्त स्थान हैं। नीचे दिखाई देने वाली गौरैया को लेखक ने गार्डन में कई मिनटों तक घूम-घूम कर अपने लिए भोजन तलाशते हुए देखा है।
![](https://rusenkumar.com/wp-content/uploads/2023/11/Sparrow-playing-in-floor-by-Rusen-Kumar.jpg)
![](https://rusenkumar.com/wp-content/uploads/2023/11/Sparrow-searching-food-Raipur-Rusen-Kumar.jpg)
मादा गौरैया गार्डन में आहार तलाशती हुई।
![](https://rusenkumar.com/wp-content/uploads/2023/11/Sparrow-in-basement-Raipur.jpg)
बेसमेंट में फुदकते हुए दो नर गौरैया।
काले और सफेद चोंच वाले नर गौरैया
छत्तीसगढ़ में नर गौरैया दो प्रकार के पाए जाते हैं। काले चोंच वाले और सफेद चोंच वाले। काले चोंच वाले गौरैया अकसर ही दिखाई पड़ते हैं। सफेद चोंच वाले गौरैया बहुत कम दिखाई पड़ते हैं। रायपुर में लेखक ने सफेद चोंच वाला नर गौरैया देखा है। अलग-अलग वातावरण में गौरैया की चोंच और पैर के रंग में थोड़ी भिन्नता रहती है।
काले चोंच वाले गौरैया घरेलू होते हैं। सफेद चोंच वाले नर गौरैया के जंगली होने की संभावना अधिक रहती है। यह अत्यंत सुखद बात है कि रायपुर के आसपास सफेद चोंच वाले नर गौरैया लेखक ने देखे हैं।
![](https://rusenkumar.com/wp-content/uploads/2023/11/Sparrow-with-White-Chonch-Raipur-Rusen-Kumar.jpg)
सफेद चोंच वाले गौरैया को रायपुर के अविनाश कैपिटल कालोनी में देखा गया।
![](https://rusenkumar.com/wp-content/uploads/2023/11/Sparrow-in-open-space-Rusen-Kumar.jpg)
उडान भरता हुआ सफेद चोंच वाला नर गौरैया।
![](https://rusenkumar.com/wp-content/uploads/2023/11/Sparrow-in-heights-Raipur-Rusen-Kumar.jpg)
कालोनी में लगभग 100 मीटर ऊँचाई पर तार पर बैठे नर-मादा गौरैया।
गौरैया को बचाने के उपाय
- गौरैया को बचाने में बच्चों की बड़ी भूमिका हो सकती है। बच्चे अत्यंत संवेदनशील होते हैं। वे पक्षियों की संवेदना को भली-भांति समझ सकते हैं। बच्चों को अपनी कालोनी में गौरैया संरक्षण क्लब बनाना चाहिए और उनकी निगरानी करनी चाहिए।
- स्कूल बच्चों को अपनी कालोनी में दिखाई देने वाली गौरैया के व्यवहार और उनकी संख्या आदि के बारे में व्यावहारिक अध्ययन करना चाहिए।
- तेज आवाज वाले संयंत्रों का कम से कम उपयोग करना चाहिए। पटाखे फोड़ते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि कहीं आसपास चिड़ियों का घोंसता तो नहीं है। चिड़ियों को तेज आवाजों से बड़ा खतरा है क्योंकि वे अत्यंत संवेदनशील होते हैं। तेज आवाज से वे मर जाते हैं।
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गौरैयाः लुप्तप्राय प्रजाति
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की सूची में गौरैया को एक लुप्तप्राय प्रजातियों के रूप में शामिल किया गया है। वर्ष 2020 में विश्व गौरैया दिवस 20 मार्च के अवसर पर सरकारी विज्ञप्ति में भारत में गौरैया की घटती संख्या पर चिंता व्यक्त की गई थी। ऐसा माना जाता है कि 1990 के दशक के उत्तरार्ध में घरेलू गौरैया का गायब होना शुरू हुआ था।
रॉयल सोसायटी ऑफ लंदन की 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार, इंसानों और गौरैयों के बीच का घनिष्ट संबंध लगभग 11,000 साल पूरानी बात है। जिस तरह से मनुष्य को स्टार्च युक्त भोजन पसंद है उसी तरह गौरैया चावल के दानों और भात को बड़े चाव से खाती है।
एक अध्ययन में कहा गया है कि कृषि के द्वारा तीन अलग-अलग प्रजाति – कुत्ते, घरेलू गौरैये और मनुष्य में आपस में इसी प्रकार के अनुकूलन की शुरुआत हुई। इसलिए यह जीव मानव के विकास क्रम में सहचरी जीव है। इसी कारण गौरैया को देखना, उसकी आवाज और उपस्थिति आदि हमें बहुत पसंद आता है।
वैज्ञानिक अध्ययनों में कहा गया है कि घरों में रहने वाले गौरैये सभी जगहों पर हमारा अनुसरण करते हैं और हम जहां पर नहीं रहते हैं, वे वहां पर नहीं रह सकते हैं। बेथलहम की एक गुफा से 4 लाख वर्ष पुराने जीवाश्म के साक्ष्य मिले हैं, जिससे पता चलता है कि घरों में रहने वाले गौरैयों ने प्रारंभिक मनुष्यों के साथ अपना स्थान साझा किया था।
ऐसी मान्यता है कि कृषि सभ्यता की शुरुआत के आसपास, शहरी-घरेलू गौरैये अन्य जंगली पक्षियों से अलग हो गए। विभिन्न शोध में पाया गया है कि इस पक्षी के पास जीन की एक जोड़ी है, जो इसको जटिल कार्बोहाइड्रेट को पचाने में मदद करता है। वायु प्रदूषण और दूषित जल घरेलू गौरैया के लिए अत्यंत जानलेवा साबित हुए हैं। दिल्ली और बिहार राज्य ने इस घरेलू जीव को अपना राजकीय पक्षी घोषित किया हुआ है ताकि लोग इसके संरक्षण के बारे में जागरूक हो सकें।
(सभी फोटो – कापीराइट – रुसेन कुमार)