आज के युग में, जहाँ जानकारी ही शक्ति है, पत्रकार एवं पत्रकारिता की भूमिका सत्ता में बैठे लोगों को जवाबदेह बनाने में महत्वपूर्ण है। उन्हें सत्तासीनों और शक्तिशाली वर्ग के लिए एक काँटे की तरह होना चाहिए, लगातार सवाल उठाते हुए, जाँच-पड़ताल करते हुए, और किसी भी गलत काम का पर्दाफाश करते हुए।
पत्रकारिता का कार्य सिर्फ खबरें देने तक ही सीमित नहीं रह सकता, बल्कि सत्तासीनों और शक्तिशाली वर्ग को आईना दिखाना भी है। एक स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकार समाज में वह ताकत है, जो सत्तासीनों और शक्तिशाली वर्ग के लिए समस्या बनती है। एक पत्रकार का उद्देश्य उन सच्चाइयों को उजागर करना होता है, जिन्हें छिपाने का प्रयास किया जाता है। आज जब पत्रकारिता संकट के दौर से गुजर रही है, यह और भी जरूरी हो गया है कि पत्रकार सत्ता के लिए एक असहज चुनौती बने रहें।
पत्रकारों के लिए एक नया शक्तिसूत्र है – पत्रकार अर्थात् सत्तासीनों और शक्तिशाली वर्ग की असली समस्या ।
पत्रकारिता का उद्देश्य
ऐतिहासिक रूप से, पत्रकार भ्रष्टाचार, सत्ता के दुरुपयोग और मानवाधिकारों के उल्लंघन को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। उन्होंने तानाशाहों को गिराया है, कॉर्पोरेट दुर्व्यवहार का पर्दाफाश किया है, और सामाजिक परिवर्तन को जन्म दिया है। लेकिन हाल के वर्षों में, पत्रकारों की भूमिका खतरे में है।
पत्रकारिता के उद्देश्य को सिर्फ सूचना के उत्पान एवं प्रसारण तक सीमित नहीं किया जा सकता, बल्कि समाज में बदलाव लाने के साधन के रूप में विस्तारित किया जाना चाहिए। पत्रकार शक्ति और माध्यम है, जो जनता को सशक्त बनाता है और सत्ता को जवाबदेह ठहराता है। पत्रकार को यह जिम्मेदारी है कि वह उन मुद्दों को उजागर करे, जहाँ पर सत्तासीनों और शक्तिशाली वर्ग जनता के लिए षड्यंत्र रचते हैं । जब पत्रकार सवाल उठाते हैं और सच्चाई की खोज करते हैं, तब वे सत्तासीनों और शक्तिशाली वर्ग के लिए एक समस्या बन जाते हैं। यह कर्तव्य है कि वे चुप्पी को तोड़ें और षड्यंत्र को उजागर करें, भले ही इसके लिए उन्हें जोखिमों और चुनौतियों का सामना करना पड़े।
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चलिए आपको वैश्विक स्तर पत्रकारों पर किस तरह के जोखिम हैं, उसकी कुछ जानकारी देता हूँ।
पत्रकारिता के जोखिम
इस लेख को पढ़ने पर विस्मयकारी आंकड़ों का पता चलता है।
दुनियाभर के देशों से जुटाए गए आंकड़ों से पता चला है कि 2023 में 45 पत्रकारों की हत्या की गई। भले ही पत्रकारिता को दुनिया का सबसे खतरनाक पेशा नहीं माना जाता हो, लेकिन इस उद्योग के कुछ खास क्षेत्रों में प्रवेश करने वाले लोगों के लिए जोखिम स्पष्ट हैं। 2012 में जब 147 पत्रकारों की हत्या हुई थी, तब यह संख्या चरम पर थी, लेकिन शुक्र है कि उसके बाद इसमें कमी आई और 2021 में 2003 के बाद से सबसे कम संख्या में पत्रकारों की हत्या दर्ज की गई।
पत्रकार होने के खतरे: क्षेत्रीय आंकड़े
विभिन्न क्षेत्रों में पत्रकारों की हत्या के आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 में इराक में छह, पाकिस्तान में चार और भारत में चार पत्रकारों की हत्या हुई, जिनमें से कुछ हत्याएं बेहद क्रूर थीं।
दुनिया में पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक देश मेक्सिको है, जहां 2020 में आठ पत्रकारों की हत्या हुई। मेक्सिको में पत्रकारों पर अक्सर नजर रखी जाती है, उन्हें धमकाया जाता है और राजनीतिक भ्रष्टाचार को उजागर करने की कोशिश करने पर उनकी हत्या कर दी जाती है। युद्ध-मुक्त देश होने के बावजूद, मेक्सिको में हर साल औसतन आठ से दस पत्रकारों की हत्या होती है।
पत्रकारों की गिरफ्तारी और कैद
पत्रकारों के लिए जोखिम सिर्फ हत्या तक सीमित नहीं है। कई पत्रकारों को राजनीतिक शासन की आलोचना करने या धार्मिक विचारधाराओं के खिलाफ बोलने पर कैद और प्रताड़ित किया जाता है। उन्हें उन तस्वीरों के लिए भी निशाना बनाया जाता है जो उन्होंने प्रकाशित की होती हैं, और कई बार गलत समय पर गलत जगह पर होने के कारण उनकी हत्या कर दी जाती है। हर साल कैद किए गए पत्रकारों की संख्या 250 से अधिक हो जाती है। इसके अलावा, गिरफ्तारियां और अपहरण भी आम हैं। 2014 और 2019 के बीच लगभग 1,500 पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया और लगभग 400 का अपहरण कर लिया गया, जो दुनिया भर के मीडिया कर्मियों के लिए कठोर वास्तविकता को दर्शाता है।
यह खतरनाक स्थिति दिखाती है कि पत्रकारिता महज एक पेशा नहीं है, बल्कि इसके साथ गहरे जोखिम भी जुड़े हुए हैं, खासकर उन जगहों पर जहाँ सच बोलना अपराध समझा जाता है।
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सत्ता से सवाल करना जरूरी क्यों?
सत्ता, चाहे वह सरकारी हो या कॉर्पोरेट, अक्सर अपने हितों के अनुसार काम करती है। वे अपने निर्णयों और नीतियों पर सवाल उठाना पसंद नहीं करते। यहीं पत्रकार की भूमिका आती है। पत्रकार का काम है कि वह सत्ता से असहज सवाल पूछे, उन तथ्यों को सामने लाए, जो जनता से छिपाए जाते हैं। यह प्रक्रिया सत्ता को जवाबदेह बनाती है और लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करती है। अगर पत्रकार सत्ता से सवाल नहीं करेंगे, तो समाज में अन्याय और भ्रष्टाचार को खत्म करना असंभव हो जाएगा।
पत्रकारिता की असली जिम्मेदारी है कि वह सत्तासीनों के लिए एक समस्या बने, ताकि वे अपनी जिम्मेदारियों से भाग न सकें। – रुसेन कुमार
भ्रष्टाचार और अन्याय का पर्दाफाश
इतिहास इस बात का गवाह है कि भ्रष्टाचार और अन्याय तब ही उजागर होते हैं, जब पत्रकार अपने कर्तव्यों को निडरता से निभाते हैं। चाहे वह राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय घोटाले हों, सत्ता के खिलाफ जब पत्रकार अपनी कलम उठाते हैं, तब ही सच सामने आता है। सत्ता हमेशा चाहती है कि उसकी गलतियां छिपी रहें, लेकिन पत्रकार का काम इन गलतियों को उजागर करना है। पत्रकारिता का यह साहस ही लोकतंत्र की रक्षा करता है।
पत्रकारों का कर्तव्य है कि वे जनता को सूचित करते रहें और शासकवर्गको जवाबदेह बनाए रखें। उन्हें लोकतंत्र के पहरेदार के रूप में स्वयंक स्थापित करना चाहिए, यह सुनिश्चित करते हुए कि शक्तिशाली वर्गों को अंधेरे में काम करने की अनुमति न हो।
सच और सत्ता के बीच टकराव
पत्रकार सच्चाई के पक्ष का व्यक्ति है। सच्चाई और सत्ता के बीच हमेशा टकराव रहा है। सरकारें और शक्तिशाली व्यक्ति आलोचनात्मक आवाज़ों को चुप कराने के लिए धमकी, सेंसरशिप और यहाँ तक कि हिंसा, न्यायालय, दवाब, लालच आदि का इस्तेमाल कर रहे हैं। पत्रकारों को केवल अपना निहीत धर्म का पालन करने के कारण परेशान किया जा रहा है, गिरफ्तार किया जा रहा है और यहाँ तक कि मार भी दिया जा रहा है।
सत्ता अपने लाभ के लिए अक्सर सच्चाई को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करती है। जब पत्रकार इन तोड़-मरोड़ कर बनाई गई वास्तविकताओं को चुनौती देते हैं, तब वे सत्ता के लिए समस्या बन जाते हैं। पत्रकार को इस टकराव से आगे बढ़ना चाहिए, साथ ही इसे अपने कर्तव्य का हिस्सा मानना चाहिए। सच्चाई की खोज में बाधाओं का सामना करना पत्रकारिता की असली शक्ति है।
इस माहौल में, पत्रकारों के लिए खड़े होना और सत्तासीनों और शक्तिशाली वर्ग के लिए असली समस्या बनना पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। उन्हें चुप रहने से इनकार करना चाहिए और सत्ता में बैठे लोगों को जवाबदेह बनाना जारी रखना चाहिए।
जवाबहेदी
पत्रकारिता जनता की आवाज़ है – यह पूर्ण सत्य बात है। पत्रकारिता समाज के हाशिए पर खड़े लोगों की बातों को सत्ता तक पहुँचाने का प्रमुख साधन है। पत्रकार जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं, न कि सत्ता, सत्तासीनों और शक्तिशाली वर्ग के प्रति। उनकी भूमिका जनता, समाज और राष्ट्र को सूचित और जागरूक करना है, ताकि वे सत्तासीनों के असली चेहरों को पहचान सकें। एक पत्रकार का काम सिर्फ खबरें देना नहीं, बल्कि समाज के लिए एक नैतिक प्रहरी बनकर खड़ा होना है।
पत्रकारों को एक ऐसी समस्या बन जाना चाहिए, जिसे सत्ता, शासक वर्ग, शक्तिशाली वर्ग द्वारा और अधिक समय तक नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। – रुसेन कुमार
स्वतंत्र पत्रकार की ताकत
स्वतंत्र पत्रकारिता एवं पत्रकार वह ताकत है, जो सत्ता के कुकृत्यों को लोकतंत्र के चौराहे पर टांग सकती है। यह उस मीडिया से अलग है, जो कॉर्पोरेट हितों और सत्ता के दबाव में काम करती है। स्वतंत्र पत्रकारिता वह स्वर है, जिसे दबाया नहीं जा सकता, मिटाया और रोका नहीं जा सकता। जब पत्रकार किसी भी बाहरी दबाव से मुक्त होकर काम करते हैं, तब वे सत्तासीनों के लिए एक असली चुनौती बन जाते हैं। ऐसे पत्रकार ही सत्ता एवं शासक वर्ग को सच्चाई का सामना करने पर मजबूर कर सकते हैं।
यह कोई आसान काम नहीं है। पत्रकारों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें उनकी सुरक्षा के लिए खतरा, वित्तीय दबाव और गलत सूचनाओं का प्रसार शामिल है। लेकिन उन्हें सच्चाई के प्रति अपनी प्रतिबद्धता में दृढ़ रहना ही चाहिए।
यहाँ कुछ उपाय दिए जा रहे हैं जिनसे पत्रकार शासक वर्ग के लिए असली समस्या बन सकते हैं:
- गलत कामों की जांच और पर्दाफाश करें: पत्रकारों को सच्चाई की खोज में अथक होना चाहिए। उन्हें गहराई से खुदाई करनी चाहिए, कठिन सवाल पूछने चाहिए, और गलत कामों को उजागर करने से नहीं डरना चाहिए, चाहे इसमें शामिल व्यक्ति या संस्थान कितने भी शक्तिशाली क्यों न हों।
- सत्ता में बैठे लोगों को जवाबदेह बनाए रखें: पत्रकारों को सत्ता में बैठे लोगों को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह बनाना चाहिए। उन्हें उनके खोखले, तथ्यहीन आख्यानों को चुनौती देनी चाहिए, उनके बनावटी उद्देश्यों पर सवाल उठाना चाहिए, और पारदर्शिता की मांग करनी चाहिए।
- आवाजहीनों को आवाज दीजिए: पत्रकारों को उन लोगों को आवाज देनी चाहिए जो हाशिए पर हैं और उत्पीड़ित हैं, स्वयं अपनी आवाज उठा नहीं सकते। पत्रकारों को उनकी कहानियाँ सुनानी चाहिए और उनकी पीड़ा और कष्टों को सहायता और निवारण के लिए समाज के समक्ष रखना चाहिए।
- सत्ता पर अंकुश लगाएँ: पत्रकारों को सरकारों और निगमों व्याप्त कुप्रथाओं को उजागर करना चाहिए। उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शक्तिशाली लोगों को अपनी स्थिति का दुरुपयोग करने की अनुमति न हो।
- पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा दें: पत्रकारों को सरकार और अन्य संस्थानों में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना चाहिए। उन्हें मांग करनी चाहिए कि जानकारी सार्वजनिक की जाए और सत्ता में बैठे लोगों को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराया जाए।
जब पत्रकार निडरता से सच्चाई की खोज करते हैं और सत्ता को जवाबदेह ठहराते हैं, तभी वे अधिक शक्तिशाली दिखाई पड़ते हैं। – रुसेन कुमार
छत्तीसगढ़ में पत्रकारों का संघर्ष
गांधी जयंती, 2 अक्टूबर 2024 के अवसर पर छत्तीसगढ़ के पत्रकारों ने राजधानी रायपुर में एक ऐतिहासिक महासभा का आयोजन किया, जिसमें राज्य के विभिन्न पत्रकार संगठनों ने पहली बार एकजुटता दिखाई। इस आयोजन में कोई मुख्य अतिथि या अध्यक्ष नहीं था, बल्कि सभी पत्रकारों ने बारी-बारी से मंच पर आकर अपनी बात रखी और अपने अनुभव साझा किए। महासभा का उद्देश्य पत्रकारों के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना और एकजुट होकर संघर्ष करना था, क्योंकि संगठन में ही शक्ति है।
प्रसिद्ध साहित्यकार एवं पत्रकार गिरीश पंकज ने अपने फेसबुक वाल पर लिखा है कि इस सभा में लगभग 15 ऐसे पत्रकार भी शामिल हुए, जिन्होंने पत्रकारिता के कारण सरकारी प्रताड़ना का सामना किया था। बस्तर के पत्रकार बप्पी राय ने अपनी आपबीती सुनाते हुए बताया कि उन्हें झूठे आरोप में, गांजा रखने के अपराध में गिरफ्तार किया गया था। वहीं, जुझारू पत्रकार सुनील नामदेव ने भी अपनी संघर्ष की कहानी साझा की और पत्रकारों पर हो रहे अन्याय को उजागर किया।
गिरीश पंकज, जो वक्ता रूप में आमंत्रित किए गए थे, उन्होंने अपने संबोधन में कहा – “मैंने अपने प्रारंभिक उद्बोधन में दिवंगत पत्रकारों को याद करते हुए कहा कि हमें उनके संघर्षों से सीख लेकर एकजुट रहना होगा। मैंने इस बात पर जोर दिया कि अगर किसी पत्रकार को उसके काम के कारण प्रताड़ित किया जाता है, तो सभी पत्रकारों को एक साथ खड़े होकर उसका समर्थन करना चाहिए और अन्याय का कड़ा प्रतिवाद करना चाहिए। दुर्भाग्यवश, ऐसा हमेशा नहीं होता। सिस्टम बहुत चालाकी से पत्रकारों के बीच फूट डालकर उन्हें कमजोर करता है।”
सभा के अंत में, पत्रकारों ने राज्यपाल और मुख्यमंत्री के नाम एक ज्ञापन भी सौंपा, जिसमें पत्रकारों के खिलाफ झूठे मामलों और सरकारी प्रताड़ना से बचाने की मांग की गई। पीसी रथ, कमल शुक्ल और राज गोस्वामी जैसे सक्रिय पत्रकारों के योगदान से महासभा सफल रही। प्रदेश के हजारों पत्रकारों ने इस आयोजन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, जिससे यह कार्यक्रम बेहद उत्साहपूर्ण रहा। उम्मीद की जा रही है कि वर्तमान सरकार पत्रकारों के प्रति पुलिस की कठोरता पर अंकुश लगाएगी और उन्हें झूठे मामलों से बचाने के लिए सख्त निर्देश देगी।
जूलियन असांजे का संघर्ष
विकिलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे ने रिहाई के बाद अपने पहले सार्वजनिक बयान में कहा कि उनकी स्वतंत्रता बहुत बड़ी कीमत पर मिली है। उन्होंने कहा, “मैं आज इसलिए आज़ाद नहीं हूं क्योंकि सिस्टम ने काम किया। मैं आज इसलिए आज़ाद हूं क्योंकि मैंने पत्रकारिता को कबूल किया, सालों की कैद के बाद।”
“मैं आज़ाद हूं क्योंकि मैंने पत्रकारिता को कबूल किया”: जूलियन असांजे
विकिलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे (अमेरिका) ने मंगलवार, 1 अक्टूबर 2024 को कहा कि उन्हें सालों की कैद के बाद इसलिए रिहा किया गया क्योंकि उन्होंने “पत्रकारिता” को स्वीकार किया, जिसे उन्होंने एक स्वतंत्र समाज का स्तंभ बताया।
जूलियन असांजे ने पिछले 14 वर्षों का अधिकांश समय या तो गिरफ्तारी से बचने के लिए लंदन में इक्वाडोरियन दूतावास में बिताया या ब्रिटेन की राजधानी में बेलमार्श जेल में बंद रहे।
उन्हें जून में रिहा किया गया था, जब उन्होंने सैकड़ों हजारों गोपनीय अमेरिकी सरकारी दस्तावेज़ों को प्रकाशित करने के आरोप में सजा काटी थी।
“आज मैं इसलिए आज़ाद नहीं हूं क्योंकि सिस्टम ने काम किया। मैं आज इसलिए आज़ाद हूं क्योंकि मैंने पत्रकारिता को कबूल किया,” असांजे ने यूरोप की काउंसिल ऑफ़ यूरोप के अधिकार संगठन को अपने पहले सार्वजनिक बयान में कहा, जो उनकी रिहाई के बाद हुआ।
“मैंने अंततः न्याय के बजाय स्वतंत्रता का चुनाव किया… अब मेरे लिए न्याय असंभव हो गया है,” असांजे ने कहा, यह नोट करते हुए कि उन्हें 175 साल की जेल की सजा का सामना करना पड़ा था।
अपनी पत्नी स्टेला के साथ शांत भाव से बोलते हुए, उन्होंने कहा, “पत्रकारिता कोई अपराध नहीं है, यह एक स्वतंत्र और सूचित समाज का स्तंभ है।” पत्नी स्टेला उनकी रिहाई के लिए अथक संघर्ष किया है।
“मूलभूत मुद्दा सीधा है। पत्रकारों को उनका काम करने के लिए अभियोजित नहीं किया जाना चाहिए,” असांजे ने कहा।
विकिलीक्स द्वारा जारी गोपनीय दस्तावेजों में अमेरिकी राज्य विभाग के विदेशी नेताओं के बेबाक विवरण, न्यायेतर हत्याओं के वृत्तांत, और सहयोगियों के खिलाफ खुफिया जानकारी शामिल थी।
असांजे ने तर्क दिया कि उनका मामला यह बताता है कि “कैसे शक्तिशाली खुफिया संगठन अपने विरोधियों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय दमन में संलग्न होते हैं,” और यह जोड़ा कि “यह यहाँ सामान्य नहीं बनना चाहिए।“
‘और अधिक दमन, और अधिक गोपनीयता’
उन्होंने कहा कि अपने कारावास के दौरान “जमीन खो दी गई,” अफसोस जताते हुए कि अब वह “और अधिक दमन, अधिक गोपनीयता और सच बोलने के लिए अधिक प्रतिशोध” देख रहे हैं।
यूरोप की काउंसिल ऑफ यूरोप (PACE) की संसदीय सभा की कानूनी समिति की सुनवाई में कहा, “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उससे जुड़ी सभी चीज़ें एक कठिन मोड़ पर हैं,” उन्होंने ।
“आइए हम सभी इस बात के लिए प्रतिबद्ध हों कि स्वतंत्रता की रोशनी कभी मद्धिम न हो, और सच्चाई की खोज जारी रहे, और कुछ के हितों से कई लोगों की आवाज़ें चुप न हो जाएं,” उन्होंने कहा।
असांजे का मामला अब भी विवादास्पद बना हुआ है।
समर्थक उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्षधर के रूप में देखते हैं और कहते हैं कि उन्हें अधिकारियों द्वारा सताया गया और अन्यायपूर्ण रूप से कैद किया गया।
आलोचक उन्हें एक लापरवाह ब्लॉगर के रूप में देखते हैं, जिन्होंने अति-संवेदनशील दस्तावेज़ों को बिना सेंसर किए प्रकाशित किया, जिससे लोगों की जान जोखिम में पड़ी और अमेरिकी सुरक्षा को खतरा हुआ।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, जो अगले जनवरी में कार्यालय छोड़ने से पहले कुछ माफ़ियां देने की संभावना रखते हैं, ने असांजे को पहले एक “आतंकवादी” कहा था।
(कापीराइट – रुसेन कुमार)