प्रखर राजनेता राहुल गाँधी जी का आरक्षण के विस्तार और जाति जनगणना का विचार न केवल सामाजिक न्याय की दिशा में एक आवश्यक कदम है, बल्कि यह एक प्रगतिशील सोच का भी परिचायक है। – रुसेन कुमार
आरक्षण का मुद्दा भारत में लंबे समय से सामाजिक न्याय और असमानता के संदर्भ में चर्चा का केंद्र बिंदु रहा है। हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने आरक्षण की सीमा को 50% से अधिक बढ़ाने और जाति जनगणना कराने की बात कही, जिसे मैं पूरी तरह सही मानता हूँ। जननेता राहुल गाँधी जी ने स्पष्ट किया है कि उनका यह विचार आरक्षण के खिलाफ नहीं, बल्कि इसे और अधिक व्यापक और न्यायसंगत बनाने के लिए है। उनके विचारों में सामाजिक समरसता और समानता की गहरी सोच झलकती है, जो भारत के जातीय ढांचे को समझने और उसे सुधारने के लिए आवश्यक है।
इस लेख में, राहुल गाँधी जी के विचारों को समर्थन देते हुए आरक्षण की आवश्यकता और उसके विस्तार के महत्त्व पर चर्चा करूँगा।
राहुल गांधी का दृष्टिकोण: आरक्षण की सीमा और जाति जनगणना
लोकसभा में विपक्ष के नेता (एलओसी) राहुल गाँधी जी ने हाल ही में अपने बयान में कहा, “हम आरक्षण को 50% से अधिक बढ़ाएंगे और जाति जनगणना करेंगे।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत की जातीय संरचना को समझने और उसे ठीक करने के लिए यह एक आवश्यक कदम है। राहुल गाँधी जी का यह बयान सामाजिक न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनके बयान को गलत समझा गया था कि वे आरक्षण के खिलाफ हैं, जबकि उनका दृष्टिकोण इसके विस्तार के पक्ष में है। मेरे विचार से उनका यह विचार इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि वर्तमान आरक्षण नीति समाज के हर वर्ग तक समानता और न्याय नहीं पहुँचा पा रही है।
जाति जनगणना की बात करते हुए राहुल गाँधी जी ने कहा कि यह “मंडल बनाम कमंडल” की बात नहीं है, बल्कि भारत को एक अधिक न्यायसंगत देश बनाने की दिशा में एक कदम है। जाति जनगणना से यह स्पष्ट हो सकेगा कि किस जातीय वर्ग के लोगों को किस प्रकार के अवसर और संसाधन उपलब्ध हैं, और कौन से वर्ग अभी भी पीछे हैं। इससे आरक्षण को और अधिक प्रभावी तरीके से लागू करने का मार्ग प्रशस्त होगा।
आरक्षण: सामाजिक असमानता को सीमित करने का साधन
आधुनिक भारत के निर्माता बाबा डा. भीम राव अंबेडकर का स्पष्ट मानना है कि आरक्षण का उद्देश्य सदियों से चली आ रही जातीय असमानता को समाप्त करना है। भारतीय समाज में जाति व्यवस्था ने लंबे समय तक एक बड़े हिस्से को शिक्षा, नौकरी और अन्य सामाजिक अवसरों से वंचित रखा। आरक्षण उन वंचित वर्गों को मुख्यधारा में लाने का एक साधन है, जो सदियों से उपेक्षित रहे हैं।
राहुल गाँधी जी का यह विचार कि आरक्षण की सीमा को 50% से बढ़ाया जाना चाहिए, पूरी तरह से तर्कसंगत है। वर्तमान में आरक्षण की सीमा सामाजिक न्याय को पूरी तरह से प्राप्त नहीं कर पा रही है, खासकर जब समाज के एक बड़े हिस्से को अभी भी उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है। अगर हम सामाजिक समानता की बात करते हैं, तो हमें उन सभी वर्गों तक आरक्षण का लाभ पहुँचाना होगा, जो इस संरचना में अभी भी हाशिए पर हैं।
जाति आधारित आरक्षण और आर्थिक आधार
राहुल गाँधी जी ने यह भी कहा कि आरक्षण केवल आर्थिक आधार पर नहीं हो सकता। जाति के आधार पर भेदभाव भारत की जड़ों में गहरे तक समाया हुआ है और इसे केवल आर्थिक दृष्टिकोण से हल नहीं किया जा सकता। उन्होंने स्पष्ट किया कि “यह केवल आर्थिक विचार नहीं है, बल्कि यह विभिन्न स्तरों पर भेदभाव की बात है।” यह एक गहन दृष्टिकोण है, क्योंकि जाति आधारित भेदभाव सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से व्याप्त है, जिसे केवल आर्थिक रूप से संबोधित करना पर्याप्त नहीं होगा।
आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग करने वाले तर्क देते हैं कि गरीबी सभी जातियों में हो सकती है, लेकिन जातीय भेदभाव केवल आर्थिक गरीबी से नहीं जुड़ा है। जाति एक ऐसा सामाजिक ढांचा है, जो व्यक्ति की पहचान और समाज में उसकी स्थिति को निर्धारित करता है। इस प्रकार, सबको समझना होगा कि जाति जनगणना और आरक्षण का विस्तार ही वह रास्ता है, जिससे वास्तविक सामाजिक न्याय प्राप्त किया जा सकता है।
भारत को समतामूलक समाज बनाने के लिए आरक्षण की नीति को और अधिक प्रभावी और समावेशी बनाने की जरूरत है, और राहुल गाँधी जी का इस संबंध में जो विचार आया है वह निश्चित रूप से इस दिशा में आगे बढ़ने बड़ा एवं साहसिक कदम है। – रुसेन कुमार
जातीय गणना: एक आवश्यक कदम
मेरा भी ऐसा मानना है कि राहुल गाँधी जी का जाति जनगणना के प्रति गहन चिंतन न केवल प्रगतिशील है, बल्कि यह भारतीय समाज की वास्तविकता को सामने लाने का एक सशक्त साधन है। जाति आधारित आंकड़ों के बिना, हम यह नहीं जान सकते कि कौन से वर्गों को किस प्रकार की सुविधा और अवसर मिल रहे हैं और कौन से अब भी पीछे हैं। जाति जनगणना से यह पता चलेगा कि किन वर्गों को और सहायता की आवश्यकता है।
इस जनगणना के बाद ही आरक्षण की सही दिशा में विस्तार किया जा सकेगा, ताकि वह वास्तव में जरूरतमंद लोगों तक पहुँचे। राहुल गाँधी जी का यह उन्नत दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से दिखाता है कि वे केवल आरक्षण को बढ़ाने की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि समाज के हर वर्ग की वास्तविक स्थिति का पता लगाने, वास्तविक स्थिति को समझने और उसके आधार पर नीतियाँ बनाने तथा उनको प्रभावी ढंग से लागू करने की बात कर रहे हैं।
जाति जनगणना से भारत में सामाजिक समानता को बढ़ावा मिलेगा और विभिन्न जातीय और आर्थिक वर्गों के लोगों को न्यायपूर्ण व्यवस्था में हिस्सेदार करने का मौका मिलेंगे। – रुसेन कुमार
(कापीराइट – रुसेन कुमार)