सांसदों एवं विधायकों द्वारा वार्षिक कार्य रिपोर्ट की आवश्यकता को अनिवार्य किया जाना चाहिए। इसे भारतीय लोकतंत्र में पारदर्शिता की दिशा में एक महान कदम के रूप में देखा जा सकता है। यह प्रस्ताव न केवल जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ावा देता है, साथ ही यह सांसदों और उनके मतदाताओं के बीच संवाद और विश्वास को भी मजबूत करता है। – रुसेन कुमार
भारतीय लोकतंत्र – विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्रों में से एक है। यहाँ पारदर्शिता और सूचना का अधिकार जैसे तत्वों की महत्वपूर्ण भूमिका है। जनता को अपने प्रतिनिधियों की गतिविधियों की जानकारी होना न केवल उनका अधिकार है, बल्कि यह एक स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी भी है।
इस लेख में मैं यह चर्चा करूँगा कि कैसे सांसदों (राज्य सभा एवं लोक सभा दोनों ही सदनों) एवं विधायकों द्वारा अपनी वार्षिक कार्य गतिविधियों की रिपोर्ट जारी करना इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
पारदर्शिता: लोकतंत्र की रीढ़
पारदर्शिता एक लोकतांत्रिक समाज की नींव होती है। यह सरकार और उसके नागरिकों के बीच विश्वास और जवाबदेही का पुल बनाती है। जब सरकारी कार्यवाहियाँ और निर्णय प्रक्रिया पारदर्शी होती हैं, तब नागरिक अधिक सूचित और सक्रिय रूप से लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भाग ले सकते हैं। यह पारदर्शिता न केवल भ्रष्टाचार व अनैतितकता को कम करती है, बल्कि सरकारी नीतियों और पहलों में जनता का विश्वास भी मजबूत करती है।
जब नागरिकों को उनके प्रतिनिधियों के कार्यों, विचारों और कल्याणकारी निर्णयों की जानकारी होती है, तो वे अधिक प्रभावी रूप से उनकी जवाबदेही तय कर सकते हैं। इस प्रकार, पारदर्शिता लोकतंत्र को अधिक प्रतिनिधित्वमूलक, जवाबदेह और भागीदारीपूर्ण बनाती है। यह सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों में सुधार के लिए नागरिकों की आवाज को मजबूती प्रदान करती है, जिससे समाज में समानता और न्याय संगत भावनाओं को बढ़ावा मिलता है। इसलिए, पारदर्शिता न केवल लोकतंत्र की रीढ़ है, बल्कि इसे अधिक समर्थ और स्थिर भी बनाती है।
***
सूचना का अधिकार: जनता की ताकत
सूचना का अधिकार, जिसे लोकतांत्रिक समाज के मूलाधार के रूप में स्वीकार किया गया है, नागरिकों को सरकारी कार्यप्रणाली में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही तलाशने की शक्ति प्रदान करता है। इस अधिकार के माध्यम से, आम जनता सरकारी रिकॉर्ड, नीतियों, और निर्णयों की जानकारी प्राप्त कर सकती है, जिससे वे अधिक सूचित और सक्रिय व सजग नागरिक बन पाते हैं।
यह अधिकार न केवल सरकारी प्रक्रियाओं में जनता की भागीदारी को सुनिश्चित करता है, बल्कि सरकारी निर्णयों में उनकी राय को महत्वपूर्ण बनाता है। इससे जनप्रतिनिधियों के न केवल अनैतिक व्यवहारों की रोकथाम होती है, बल्कि नागरिकों में विश्वास और संवाद करते रहने की भावना भी बढ़ती है। अतः, सूचना का अधिकार नागरिकों को उनके हकों और जिम्मेदारियों के प्रति अधिक सजग बनाता है और स्वस्थ लोकतंत्र के निर्माण में उनकी भूमिका को रेखांकित करता है।
इस प्रकार, यह अधिकार नागरिकों के हाथ में एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में कार्य करता है, जिससे वे अपने समाज और सरकार को अधिक जवाबदेह और पारदर्शी बनाने में सहायता कर सकते हैं।
***
सांसदों की वर्तमान निष्क्रियता: चिंताजनक परिदृश्य
सांसदों की वर्तमान निष्क्रियता भारतीय लोकतंत्र के लिए एक चिंताजनक परिदृश्य प्रस्तुत करती है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सांसदों की सक्रिय भागीदारी महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि वे जनता के प्रतिनिधि होते हैं और उनके निर्णय और कार्य राष्ट्र के विकास की दिशा निर्धारित करते हैं।
जब सांसद एवं विधायक निष्क्रिय रहते हैं, तो इससे न केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बाधा आती है, बल्कि जनता का विश्वास भी कम होता है और विद्रोह और असंतोष पनपने की आशंका बनी रहती है। उनकी निष्क्रियता से नीति निर्माण और कानूनी प्रक्रियाओं में देरी होती है, जिससे आवश्यक सामाजिक और आर्थिक सुधारों में बाधा उत्पन्न होती है।
यह स्थिति जनता के हितों की उपेक्षा का संकेत देती है और लोकतांत्रिक संस्थाओं में जनता के विश्वास को मंद करती है। इसलिए, सांसदों एवं विधायकों की निष्क्रियता को दूर करना और उन्हें अधिक सक्रिय और जवाबदेह बनाना भारतीय लोकतंत्र के स्वस्थ और सक्रिय विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। यह न केवल सरकारी कार्यवाहियों में सुधार लाएगा, साथ ही साथ जनता के विश्वास को भी मजबूत आधार प्रदान करेगा।
***
कंपनियों और सांसदों में तुलनात्मक विश्लेषण
कंपनियों और सांसदों के बीच वार्षिक रिपोर्टिंग की तुलना करने पर कुछ महत्वपूर्ण अंतर स्पष्ट होते हैं। कंपनियाँ, विशेषकर सार्वजनिक कंपनियाँ, अपने स्टेकहोल्डर्स (भागीदारों) के प्रति नियमित रूप से वार्षिक प्रगति रिपोर्ट जारी करती हैं, जिसमें उनके वित्तीय प्रदर्शन, कार्यों, और नीतियों का विस्तार से वर्णन होता है। यह प्रक्रिया न केवल पारदर्शिता सुनिश्चित करती है, बल्कि उनके कार्यों की जवाबदेही भी बढ़ाती है।
इसके विपरीत, भारत में सांसदों एवं विधायकों के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिससे वे अपने कार्यों और प्रदर्शन की वार्षिक कार्य रिपोर्ट जनता के समक्ष प्रस्तुत करें। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि जनता को उनके द्वारा किए गए कार्यों और उनके प्रदर्शन की स्पष्ट जानकारी नहीं होती। इस अभाव में, नागरिकों के लिए उनके प्रतिनिधियों की जवाबदेही तय करना कठिन हो जाता है।
कंपनियों की इस प्रकार की वार्षिक रिपोर्टिंग प्रणाली को सांसदों एवं विधायकों पर लागू करने से न केवल उनके कार्यों की पारदर्शिता बढ़ेगी, बल्कि नागरिकों को उनके प्रतिनिधियों के प्रदर्शन का उचित आकलन करने में मदद मिलेगी। इस तरह की रिपोर्टिंग से सांसदों एवं विधायकों को अपनी जिम्मेदारियों के प्रति अधिक सजग रहने का प्रोत्साहन मिलेगा और यह उन्हें अपने कार्यों में अधिक उत्तरदायी बनाएगा। इससे लोकतांत्रिक प्रणाली में जनता का विश्वास और भी प्रगाढ़ होगा।
***
आगे की राह: सुझाव और निष्कर्ष
भारतीय लोकतंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही को मजबूत करने के लिए, सांसदों एवं विधायकों द्वारा वार्षिक रिपोर्ट जारी करने की प्रणाली का निर्माण एक क्रांतिकारी कदम हो सकता है।
इसके लिए, पहला सुझाव यह है कि संसद में एक ऐसा विधेयक प्रस्तुत किया जाए जो सभी सांसदों को अपने कार्यकाल की वार्षिक समीक्षा जारी करने के लिए बाध्य करे। इस रिपोर्ट में उनके द्वारा की गई पहलें, उपलब्धियाँ, विधायी कार्य, और उनके क्षेत्र के विकास के लिए किए गए प्रयासों का विवरण शामिल होना चाहिए।
दूसरा, इस तरह की रिपोर्टिंग प्रक्रिया को डिजिटल मंचों पर प्रस्तुत करने की व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि जनता के लिए इस तक पहुँचना आसान हो। इससे नागरिकों को अपने प्रतिनिधियों के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने में सुविधा होगी।
तीसरा, इस रिपोर्ट में जनता की प्रतिक्रिया और सुझावों को शामिल करने की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि सांसदों को अपने मतदाताओं की आवश्यकताओं और उम्मीदों का बेहतर आकलन हो सके।
मेरे इन सुझावों को लागू करने से न केवल सांसदों एवं विधायकों की जवाबदेही बढ़ेगी, बल्कि नागरिकों के बीच सरकारी प्रक्रियाओं के प्रति आत्मीयता और समझ भी मजबूत होगी। यह प्रक्रिया लोकतंत्र को और अधिक सक्रिय, जन-केंद्रित और प्रभावी बनाएगी।
(Copyright@rusenkumar.com)