“जो होता है, वह अच्छे के लिए होता है”, इस कथन की सार्वभौमिकता पर प्रश्न उठाना आवश्यक है। यदि यह सच होता, तो दुनिया एक आदर्श स्थान होती, जहाँ दुःख, पीड़ा, अन्याय और असमानता का कोई अस्तित्व नहीं होता। लेकिन वास्तविकता इससे कोसों दूर है। हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहाँ युद्ध, हिंसा, बीमारी, निराशा, गरीबी और असंख्य अन्य समस्याएँ एवं विसंगतियाँ व्याप्त हैं। ऐसे में यह कहना कि “जो होता है अच्छे के लिए होता है,” अव्यवहारिक और भ्रामक प्रतीत होता है।
रुसेन कुमार द्वारा
सदियों से हमारे समाज में यह वाक्यांश गूंजता रहा है कि “जो होता है, वह अच्छे के लिए होता है।” जब भी जीवन में कोई कठिनाई या विपत्ति आती है, तो इस वाक्य को लोगों द्वारा दोहराते हुए देखा जा सकता है – जैसे यह एक अटूट सत्य हो। इस वाक्य को मानने वाले लोग इसे जीवन का एक स्वाभाविक नियम मानते हैं। यह वाक्य हमारे समाज में सांत्वना का एक तरीका बन गया है। लेकिन क्या वास्तव में जो भी होता है, वह अच्छे के लिए होता है? और अगर ऐसा है, तो यह कथन सभी व्यक्तियों के लिए समान रूप से सत्य क्यों नहीं होता? यह विचार न केवल तर्कसंगत आधार पर चुनौती देने योग्य है, बल्कि दार्शनिक दृष्टिकोण से भी इसका पुनर्विचार आवश्यक है।
इस लेख में मैं इस धारणा का तर्कसंगत और गणितीय दृष्टिकोण से विश्लेषण करूँगा, जिससे आपके मन में यह स्पष्ट हो सके कि यह कथन कितनी हद तक सही है और कहाँ यह केवल एक सांत्वना का साधन है, मिथ्या और भ्रामक है।
1. वस्तुनिष्ठ सत्य और व्यक्तिगत अनुभव
सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि जो होता है, वह एक वस्तुनिष्ठ (objective) घटना है, जबकि उसका परिणाम हमारे अनुभवों के अनुसार भिन्न हो सकता है। किसी एक व्यक्ति के लिए कोई घटना लाभकारी हो सकती है, तो वहीं दूसरे व्यक्ति के लिए वह हानिकारक हो सकती है। उदाहरण के लिए, यदि एक व्यक्ति को पदोन्नति मिलती है, तो उसके लिए यह अच्छा हो सकता है, लेकिन वही पदोन्नति किसी अन्य सहकर्मी के लिए दुःख का कारण बन सकती है।
यहाँ समस्या यह है कि “जो होता है, वह अच्छे के लिए होता है” का दावा सभी व्यक्तियों के लिए सत्य नहीं हो सकता। यदि हर घटना केवल अच्छाई का परिणाम लाए, तो दुनिया में दुःख, असफलता और पीड़ा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। लेकिन वास्तविकता यह है कि संसार में दुःख और असफलताएँ मौजूद हैं, और यह हमारी सामूहिक मानवीय अनुभूति का हिस्सा हैं।
2. सांत्वना या यथार्थ?
“जो होता है, अच्छे के लिए होता है” कहने का मुख्य उद्देश्य लोगों को कठिनाइयों से उबरने में मदद करना होता है। यह एक प्रकार की मानसिक और भावनात्मक सांत्वना है, जो हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हमारी हर विफलता और पीड़ा अंततः किसी बड़ी अच्छाई का हिस्सा है। लेकिन क्या यह वास्तव में सत्य है, या सिर्फ एक भावनात्मक शांति प्रदान करने वाला विचार?
जब हम यह मानते हैं कि जो भी होता है, वह अच्छे के लिए होता है, तो हम अपने आप से यह कहने लगते हैं कि हमें हमारे दुःख, हानि और पीड़ा का सामना करना चाहिए क्योंकि अंततः सब कुछ अच्छा ही होगा। यह सोच वास्तविकता को नकारने जैसा है। क्योंकि जो होता है, वह हमेशा अच्छा नहीं होता—कभी-कभी यह बेहद बुरा, विनाशकारी और असीम पीड़ा देने वाला भी हो सकता है।
3. गणितीय और संभाव्यतावादी दृष्टिकोण
इस विचार को एक गणितीय सिद्धांत के रूप में देखें, तो यह और भी निराधार प्रतीत होता है। जीवन में घटनाएँ यादृच्छिक और अनिश्चित होती हैं। किसी भी घटना का परिणाम दो संभावित रूप ले सकता है—अच्छा या बुरा। यदि हम यह मान लें कि जो होता है, वह केवल अच्छे के लिए होता है, तो हम संभाव्यता के मूल नियमों को नकार रहे हैं।
उदाहरण के लिए, यदि किसी सिक्के को उछाला जाए, तो वह या तो चिट (हेड्स) आएगा या पट (टेल्स)। यह एक शुद्ध गणितीय सम्भाव्यता है। लेकिन यदि हम कहें कि हर बार चिट ही आएगा, तो यह सम्भाव्यता के सिद्धांत के विपरीत होगा। इसी प्रकार, जीवन की घटनाओं का परिणाम कभी अच्छा हो सकता है और कभी बुरा। यह मानना कि हर बार परिणाम अच्छा ही होगा, यथार्थ और सम्भाव्यता के विरुद्ध है।
“जो होता है, अच्छे के लिए होता है” एक ऐसी धारणा है जो केवल सांत्वना या मन रखने के रूप में कार्य करती है, लेकिन तर्कसंगत और दार्शनिक दृष्टिकोण से यह विचार पूरी तरह से निराधार है।” – रुसेन कुमार
4. संसार में अच्छाई और बुराई का संतुलन
यदि यह कथन सच होता कि “जो होता है, वह अच्छे के लिए होता है,” तो संसार में केवल अच्छाई का ही साम्राज्य होता। हर व्यक्ति सुखी और संतुष्ट होता। लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। हमारे चारों ओर असंतोष, दुख, पीड़ा और अन्यायपूर्ण घटनाएँ दिखाई देती हैं। अगर हर व्यक्ति के जीवन में केवल अच्छा ही हो रहा होता, तो हमारे समाज में इतनी विसंगतियाँ और संघर्ष होते ही क्यों – व्यक्तिगत स्तर पर और सामाजिक स्तर पर ?
मेरी यह बात इस धारणा को चुनौती देती है कि जो कुछ भी होता है, वह अच्छे के लिए होता है। संसार में अच्छाई और बुराई का संतुलन है। हर घटना किसी के लिए लाभकारी हो सकती है, तो किसी अन्य के लिए वह विपरीत हो सकती है। यह सत्य है कि कभी-कभी कुछ घटनाएँ हमें सिखाने के लिए होती हैं, मगर इसका यह अर्थ नहीं है कि वे अपने आप में अच्छी थीं। जीवन में अच्छाई और बुराई दोनों का समान महत्व है, और इसे हमें स्वीकार करना चाहिए।
हालाँकि, इसका यह अर्थ भी नहीं है कि हमें हमेशा एक निराशावादी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। जीवन में कई बार ऐसी घटनाएं होती हैं जो पहली नज़र में नकारात्मक लग सकती हैं, लेकिन बाद में वे हमारे लिए लाभदायक साबित होती हैं। एक असफलता हमें सीखने और बढ़ने का अवसर दे सकती है, एक नुकसान हमें अपनी प्राथमिकताओं पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित कर सकता है, और एक चुनौती हमें अपनी आंतरिक शक्ति और लचीलेपन का एहसास दिला सकती है।
घटनाओं के सकारात्मक परिणामों को किसी दैवीय योजना या पूर्वनिर्धारित भाग्य के लिए जिम्मेदार ठहराने के बजाय, हमें अपनी प्रतिक्रियाओं और कार्यों को श्रेय देना चाहिए। हमारी चुनौतियों का सामना करने का तरीका, उनसे सीखने की हमारी क्षमता, और आगे बढ़ने का हमारा दृढ़ संकल्प ही हमें उन कठिन परिस्थितियों से कुछ अच्छा निकालने में मदद करता है।
5. समाज और व्यक्तिगत दृष्टिकोण
समाज में प्रचलित इस विचार को कई बार धार्मिक और दार्शनिक आधारों पर भी तर्कसंगत ठहराया जाता है। लोग मानते हैं कि हर घटना, चाहे वह कैसी भी हो, किसी उच्च शक्ति द्वारा नियंत्रित होती है और इसका अंततः अच्छा परिणाम ही होगा। लेकिन यह धारणा व्यक्तिगत अनुभवों से मेल नहीं खाती।
यदि हम इस बात को सार्वभौमिक रूप से मान लें कि जो भी होता है, वह अच्छे के लिए होता है, तो इसका यह अर्थ होगा कि जो अन्याय, अत्याचार, और पीड़ा संसार में मौजूद है, वह भी अच्छाई के लिए है। जबकि ऐसा विचार करना पूरी तरह से मानवता और नैतिकता के सिद्धांतों के विरुद्ध है। अन्याय और अत्याचार कभी भी अच्छे के लिए नहीं हो सकते; वे केवल पीड़ा और विनाश का कारण बनते हैं।
6. नैतिकता और व्यक्तिगत जिम्मेदारी
एक निष्क्रिय और भाग्यवादी रवैया अपनाने के लिए प्रेरित कर सकता है।
“जो होता है, अच्छे के लिए होता है” एक निष्क्रिय और भाग्यवादी रवैया अपनाने के लिए प्रेरित कर सकता है। समाज में प्रचलित इस तरह के भ्रामक विचार व्यक्ति की नैतिक जिम्मेदारियों को कमजोर कर सकते हैं, लोगों को वास्तविक जिम्मेदारियों के प्रति पलायनवादी बना सकते हैं। जब हम यह मान लेते हैं कि जो भी होता है, वह अच्छे के लिए ही होता है, तो हम अपनी जिम्मेदारियों से साफ मुकर सकते हैं, संघर्ष और बेहतरी के लिए आगे नहीं आएँगे । यह एक ऐसी मानसिकता को जन्म दे सकता है जो व्यक्तिगत जिम्मेदारी और सामाजिक परिवर्तन के प्रयासों को कमजोर करती है। अगर कोई बुरी घटना घटती है, तो हम इसे केवल किस्मत या भाग्य का खेल मान लेते हैं, बजाय इसके कि हम उससे कुछ सीखें या उसे सुधारने की कोशिश करें।
यह विचार व्यक्ति को निष्क्रिय और भाग्य के प्रति आश्रित बना सकता है। अगर सब कुछ पहले से तय है और अच्छा ही होना है, तो फिर व्यक्ति की नैतिक जिम्मेदारी क्या है? उसे अपने कार्यों के प्रति उत्तरदायी क्यों होना चाहिए?
“जो होता है अच्छे के लिए होता है” के बजाय, शायद हमें यह कहना चाहिए कि “जो होता है, उसे हम अच्छे के लिए बदल सकते हैं।” यह एक ऐसा दृष्टिकोण है जो हमें सशक्त बनाता है, हमें आशा देता है, और हमें एक अधिक न्यायपूर्ण और समावेशी दुनिया बनाने के लिए प्रेरित करता है।
यह कहना कि जो होता है, वह केवल अच्छे के लिए होता है, एक भ्रामक विचार है। – रुसेन कुमार
कापीराइट – रुसेन कुमार