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Home विचार शक्ति साहित्य व्यंग्य

राजनीतिक व्यंग्यः सड़कों में गड्ढे होने ही चाहिए

सड़कों पर गड्ढे हों या जीवन में, इनसे घबराने की जरूरत नहीं। ये हमें हर बार याद दिलाते हैं कि जीवन का रास्ता सीधा नहीं है। गड्ढों से बचते हुए आगे बढ़ने में ही असली मज़ा है।

रुसेन कुमार Rusen Kumar by रुसेन कुमार Rusen Kumar
September 19, 2024
in व्यंग्य, विचार शक्ति
Reading Time: 2 mins read
रुसेन कुमार

rusen kumar photo

गड्ढे हमारी हमारी अर्थव्यवस्था की महान धरोहर हैं।

गड्ढे देश की अर्थव्यवस्था को गति देते हैं, रोजगार पैदा करते हैं, और हमारी राजनीतिक व्यवस्था की सच्चाई को उजागर करते हैं।

रुसेन कुमार द्वारा

आज एक यू-ट्यूबर महापुरुष ने सरकार द्वारा बनाई गई महंगी नई नेवेली सड़कों पर गड्ढों की पोल खोली, तो मेरे नसों के लाल रक्त कणिकाओं में उबाल आ गया। मेरे तड़पते हाथ ने कलम थाम लिया और अपने व्यंग्यकार मन को जगाया। उस यू-ट्यूब रचना ने मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर सड़कों में गड्ढे क्यों नहीं होने चाहिए, गड्ढों से हमे क्या दिक्कत है, गड्ढे हमारी अर्थव्यवस्था के लिए कितने जरूरी हैं आदि-आदि। मुझे अहसास हुआ कि केवल सड़कें बनाना पर्याप्त नहीं है, सड़कों में गड्ढों का होना देश की प्रगति का असली संकेतक है। गड्ढे न सिर्फ हमारी सड़कों पर बल्कि हमारी सोच और राजनीतिक व्यवस्था में भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। बिना गड्ढों के देश और समाज एक स्थिर स्थिति में फंस जाता है, और प्रगति रुक जाती है। इसलिए, गड्ढों से हमें घृणा नहीं बल्कि उनका स्वागत करना चाहिए, क्योंकि वे हमारे देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाते हैं।

यह कहना कोई नई बात नहीं कि सरकार में ‘हर तरफ गड्ढा’ है। यह गड्ढा केवल सड़कों तक सीमित नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, और कई क्षेत्रों में फैला हुआ है। पर जब देश के हर कोने में गड्ढे ही गड्ढे हो, तो सड़कों पर गड्ढे क्यों न हों, सड़कें ही अछूते क्यों रहें? यह एक प्रकार की समरूपता है, एक ऐसा दृश्य जो ‘विकास’ की सही तस्वीर पेश करता है।

विकास के गड्ढे: देश की पहचान

कहते हैं कि हर सरकार की एक खास पहचान होती है, इस सरकार की कोई विशिष्ट पहचान होनी चाहिए। किसी सरकार की पहचान उसके द्वारा बनवाए गए पुल, अस्पताल, स्कूल या फिर रोजगार की संख्या से होती है, तो यह सरकार भी ऐसा ही करने लगी। लेकिन ये नई सरकार है, अनोखी सरकार है, जिसने विकास की धारणा को उलट- पलट दिया। यह नई सरकार यह भी सिखा रही है कि सरकार की पहचान किसी ठोस वस्तु या सुविधा से नहीं, बल्कि एक खालीपन से भी हो सकती है, जिसे हम सुविधापूर्वक ‘गड्ढा’ कह सकते हैं।

गड्ढे हमें याद दिलाते हैं कि हर बड़े विकास की शुरुआत एक खाली स्थान से होती है। और विकास करने के पहले गड्ढा तो खोदना ही पड़ता है। जितना बड़ा गड्ढा होगा, उतनी सशक्त विकास की बुनियाद रखी जाएगी। जब सड़क पर गड्ढा होता है, तो वह आपको भविष्य के निर्माण की संभावना का संकेत देता है। शायद वह गड्ढा एक नए मेट्रो स्टेशन के नीचे छुपा हुआ हो, या फिर किसी स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट का हिस्सा हो। और अगर कुछ न हो तो कम से कम गड्ढा तो है ! गड्ढा हमें संतुष्ट क्यों नहीं करता ! गड्ढों से संतुष्ट होना कब सीखेंगे !

सड़क के गड्ढे और जीवन दर्शन

सड़क पर गड्ढे महज सिविल इंजीनियरिंग की विफलता नहीं, बल्कि इसमें जीवन का एक गहरा दर्शन हैं, दर्शन छिपा बैठा हुआ है। जैसे जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं, वैसे ही सड़कों पर गड्ढे आते हैं – कुछ बड़े, कुछ छोटे। जीवन की राह में जब हम एक गड्ढे में गिरते हैं, तो ठोकर लगती है, तो हमें अपने पैरों पर खड़ा होने की कला आती है। ये सरकार हमें यही सिखा रही है कि सड़कों के गड्ढे भी हमें ठोकरें खाने और फिर से उठने का अद्भुत अनुभव प्रदान करते हैं।

सोचिए, अगर सड़कें एकदम सीधी और चिकनी होतीं, तो हमारी गाड़ी कभी धीमी नहीं होगी। हम तेजी से आगे बढ़ते और शायद उन नज़ारों को न देख पाते जो हमें हर गड्ढे के कारण रुकने पर दिखते हैं। गड्ढे हमें रुकने, सोचने और जीवन के अर्थ को समझने का मौका देते हैं, गड्ढे महान वस्तु हैं।

गड्ढे और आत्मनिर्भरता

सरकार की आत्मनिर्भर भारत योजना को गड्ढों के बिना समझना असंभव है। जब सड़क पर गड्ढा होता है, तो सरकार का संदेश साफ है—अपने संसाधनों का प्रयोग करो। आपके पास गाड़ी है, तो उसे बचाने के लिए खुद से उपाय खोजो। अपनी गाड़ी के टायर को मजबूत करो, शॉक एब्जॉर्बर लगाओ, या फिर पैदल चलने की आदत भी डालो।

सरकार आपको खुद से सोचने और निर्णय लेने का अधिकार देती है। गड्ढे आपको एक जिम्मेदार नागरिक बनाते हैं। अगर सड़कें एकदम सही होतीं, तो लोग अपने जीवन में आने वाली परेशानियों से जूझना ही भूल जाते। यह गड्ढे हमें जीवन के हर क्षेत्र में संघर्ष करना सिखाते हैं और यह भी कि कैसे हर मुश्किल का सामना किया जाए।

गड्ढे: बेरोजगारी और रोजगार के बीच का पुल

गड्ढों को केवल समस्याओं के रूप में देखना कहाँ तक उचित है होगा। गड्ढों को कब तक केवल समस्या की नजर से देखते रहेंगे। हमें अपनी ओछी मानसिकता में विकास करना होगा। असल में, ये गड्ढे रोजगार के नए अवसर पैदा करते हैं। कम से कम ठेका कंपनियों के लिए तो यह अनमोल वित्तलाभ का प्रबंध है। जहाँ गड्ढे होते हैं, वहाँ भरने के लिए काम भी होते हैं। हर गड्ढा सिविल इंजीनियरों, मजदूरों, और कॉन्ट्रैक्टरों के लिए रोज़गार के नए द्वारा खोलता है। गरीब-मजदूर भाइयों को काम मिलने का कोई ठोस उपाय भी तो होना चाहिए। और अगर गड्ढे लंबे समय तक बने रहते हैं, तो वहाँ दुपहिया और चौपहिया वाहन मरम्मत की दुकानों की भी अच्छी चांदी रहती है। यह समय उचित है कि हम गड्ढों का व्यावसायीकरण कर डालें। प्रगति में गड्ढों का योगदान सुनिश्चित करना ही होगा।

इसलिए, गड्ढों को देखकर निराश होने की जरूरत नहीं। समाज और राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाए रखने का एक चक्र है गड्ढे । जब गड्ढे होंगे, तो काम भी होगा। सड़क पर गड्ढे भरेंगे, फिर टूटेंगे, फिर भरेंगे, यह जीवन का चक्र है, जीवन और समाज ऐसा ही चलता है। और इसी चक्र में न जाने कितने परिवारों का पेट पलता रहेगा, क्या यह छोटी-मोटी बात है! क्या इस तथ्य में कोई महान बात नजर नहीं आती !

वोटबैंक का गड्ढा

गड्ढे केवल सड़कों पर ही नहीं, बल्कि राजनीति में भी अदृश्य गड्ढे होते हैं। हर चुनाव में हमें सत्तासीनों की बड़ी-बड़ी बातें सुनने को मिलती हैं—सबके लिए विकास, सभी तक सुविधाएँ पहुँचाने का वादा, और क्या नहीं। पर चुनाव के बाद, यह वादे एक गहरे गड्ढे में गिर जाते हैं, जहां से उन्हें ढूंढ पाना असंभव हो जाता है।

वोटबैंक की राजनीति में भी गड्ढे होते हैं, होने भी चाहिए। राजनीति भी गड्ढों से अछूता क्यों रहे। एक वर्ग को खुश करने के चक्कर में सरकारें दूसरे वर्ग के अधिकारों और आवश्यकताओं को अनदेखा कर देती हैं। यह असमानता का गड्ढा बढ़ता चला जाता है, और फिर उसे भरने के लिए कोई नई योजना बनती है, नई सड़कें बनती हैं।

गड्ढे और धैर्य का पाठ

सड़कों पर गड्ढे हमें एक और महत्वपूर्ण सबक सिखाते हैं—धैर्य। जब गाड़ी धीमी पड़ती है, जब हर गड्ढे पर झटके लगते हैं, तो हम खुद को संयमित रखना सीखते हैं। धैर्य, वर्तमान सरकार का अनकहा मंत्र है। हमें धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करनी चाहिए कि एक दिन यह गड्ढा भी भर जाएगा, जैसे कितना भी बड़ा भारी दुख हो कुछ ही दिनों मे उसका जख्म भर जाता है। और अगर नहीं भरेगा, तो शायद सरकार इसे हमारी परीक्षा के रूप में देख रही है—कितना धैर्य है जनता में?

गड्ढे हमें यह भी सिखाते हैं कि जीवन में हर चीज को स्वीकार करना चाहिए। जैसे सड़क पर गड्ढे हमें झटका देते हैं, वैसे ही जीवन में परेशानियाँ हमें झटका देकर तैयार करती हैं। अगर हम इन गड्ढों से बच निकलते हैं, तो जीवन की किसी भी मुश्किल में खुद को संभाल सकते हैं।

सड़कों पर गड्ढे हों या जीवन में, इनसे घबराने की जरूरत नहीं। ये हमें हर बार याद दिलाते हैं कि जीवन का रास्ता सीधा नहीं है। गड्ढों से बचते हुए आगे बढ़ने में ही असली मज़ा है।

कापीराइट – रुसेन कुमार

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Tags: राजनीतक व्यंग्यरुसेन कुमार
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रुसेन कुमार, अग्रणी पत्रकार, कवि, लेखक और सामाजिक उद्यमी हैं। छत्तीसगढ़ में निवासरत हैं। सामाजिक-आर्थिक, राजनीतिक विषयों के चिंतन पर उनके सैकड़ों आलेख और 15 पुस्तकें प्रकाशित हैं। छत्तीसगढ़ में निवासरत हैं।

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रुसेन कुमार प्रतिभाशाली पत्रकार, लेखक एवं सामाजिक उद्यमी हैं।

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