रुसेन कुमार ने मई 2015 में भारत के संविधान की छपाई, गुणवत्ता और उपलब्धता के बारे में एक ऐतिहासिक खुलासा किया था। इसके बाद केंद्र सरकार को संविधान दिवस मनाने के लिए होना पड़ा। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने 19 नवंबर, 2015 में 26 नवंबर को ‘संविधान दिवस’ के रूप में मनाने के भारत सरकार के निर्णय को अधिसूचित किया।
(दैनिक भास्कर में प्रकाशित समाचार आलेख को जैसा छपा था वैसे ही यहाँ अपने पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ। लेख के अंत में लेख का स्त्रोत दिया गया है।)
रायपुर। जी हां, सही पढ़ा आपने। यदि आप संविधान पढ़ना चाहते हैं तो आपको दिल्ली जाकर उसे खरीदना होगा। क्योंकि यह दिल्ली के केवल दो सरकारी कार्यालयों में बिक्री के लिए सार्वजनिक बिक्री के लिए उपलब्ध है। जी हां बिक्री के लिए, संविधान किसी भी नागरिक के लिए नि:शुल्क उपलब्ध नहीं है। यह जानकारी प्रदेश के रायगढ के रहने वाले रुसेन कुमार ने आरटीआई के तहत हासिल की है।
भारत का संविधान नागरिकों के लिए सहज उपलब्ध नहीं है और न ही सरकार इसे निःशुल्क उपलब्ध कराती है। कोई पढ़ना चाहे तो उसे खरीदना पड़ता है। खरीदने के लिए उसे दिल्ली जाना पड़ता है, क्योंकि यह राजधानी स्थित केवल दो सरकारी कार्यालयों में यह सार्वजनिक बिक्री के लिए उपलब्ध है। इतना ही नहीं, सरकार द्वारा नियमित रूप से संविधान को पर्याप्त संख्या में भी प्रकाशित नहीं किया जा रहा है।
क्योंकि संविधान प्रति देश के किसी और शहर में नहीं मिलती। यह जानकारी राइट टू इंफर्मेशन के तहत छत्तीसगढ के रुसेन कुमार ने निकलवाई है। आरटीआई द्वारा निकाले गए दस्तावेज में यह भी सामने आया है कि देश का संविधान किसी भी नागरिक के लिए मुफ्त में उपलब्ध नहीं है। रुसेन का कहना है कि संविधान का पालन तभी हो सकेगा जब नागरिकों को अनिवार्य रूप से संविधान की प्रति उपलब्ध हो, जिससे वह उसे बार-बार पढ़कर अपने अधिकारों को भली-भांति जाने व समझे तथा अपने कर्तव्यों के अनुसार आचरण करे, तभी हम एक सच्चे एवं गौरवशाली लोकतंत्र के उद्देश्यों को प्राप्त करने में समर्थ हो सकेंगे।
छत्तीसगढ़ के रायगढ़ निवासी रुसेन कुमार ने विधि और न्याय मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली को पत्र लिखकर निवेदन किया था कि उसे भारत के नागरिक होने की हैसियत से संविधान की एक प्रति सरकार निःशुल्क उपलब्ध कराए। रुसेन कुमार द्वारा इस पत्र की प्रतिलिपियां भारत के राष्ट्रपति, मुख्य न्यायधीश, कानून एवं न्याय मंत्री को भी भेजी गई थी। पत्र के जवाब में रुसेन कुमार को बताया गया कि संविधान नागरिकों के लिए नि:शुल्क उपलब्ध नहीं है, इसे खरीदने के लिए उन्हें दिल्ली जाना पड़ेगा।
विधि और न्याय मंत्रालय, विधायी विभाग की ओर से रामावतार यादव, शाखा अधिकारी, उप विधायी परामर्शी द्वारा पत्र का जवाब भेजा गया। पत्र क्रमांक – फाइल संख्या. ७(१)/ २०१४ – संशो./दिनांक १६.१२.२०१४ में बताया गया कि भारत का संविधान एक समूल्य प्रकाशन है, जिसे प्रकाशन नियंत्रक, भारत सरकार, सिविल लाइंस, नई दिल्ली एवं विधि साहित्य प्रकाशन, विधायी विभाग, विधि एवं न्याय मंत्रालय, आईएलआई बिल्डिंग, भगवान दास मार्ग, नई दिल्ली से प्राप्त किया जा सकता है।
रुसेन कुमार ने बताया कि एक साल पहले वे संविधान पढ़ना चाहते थे। ३-४ महीने तक विभिन्न शहरों के पुस्तक दुकानों में जाकर इसे खरीदना चाहा लेकिन इसकी मूल प्रति उपलब्ध नहीं थी। इसलिए १४ नवंबर २०१४ को एक पत्र लिखकर विधि और न्याय मंत्रालय से संविधान की प्रतियां प्राप्त करने की प्रक्रिया एवं इसकी उपलब्धता के बारे में जानना चाहा। इसके बाद, उसी मंत्रालय को ८ दिसंबर २०१४ को एक अन्य पत्र लिखकर एक नागरिक की हैसियत से उसे संविधान के नवीनतम संस्करण की एक प्रति सरकार की ओर से निःशुल्क प्रदान करने का निवेदन किया।
इसके बाद संविधान की एक प्रति खरीदने के लिए रुसेन कुमार को रायगढ़ से नई दिल्ली जाना पड़ा। वे कहते हैं कि एक सामान्य नागरिक को संविधान की एक प्रति खरीदने के लगभग १६०० किलोमीटर दूर जाना पड़े, यह बात किसी भी दृष्टिकोण से उचित एवं व्यवहारिक नहीं है। यह बेहद निराशाजनक बात है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के किसी नागरिक को उसके संविधान की प्रति पाने के लिए २-३ महीनों इंतजार करना पड़े, इस शहर से उस शहर भटकना पड़े तथा उसकी जानकारी एवं उपलब्धता के विषय में सरकार को पत्र लिखना पड़े।
संविधान के अनुच्छेद ५१ (क) च्च्में मूल कर्तव्य के अंतर्गत यह निर्देश है- भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे।
रुसेन कुमार कहते हैं कि संविधान पढ़ना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है और संविधान की प्रति प्राप्त करना उसका अधिकार है। नागरिकों को सहजता से संविधान उपलब्ध कराना सरकार का कर्तव्य है। अतः सरकार को एक ऐसी देशव्यापी व्यवस्था विकसित करनी चाहिए, जिससे नागरिकों को उनके निकटतम स्थान पर सहजता से संविधान की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके।
रुसेन कुमार ने अपने एक आरटीआई का संदर्भ देकर यह भी सवाल उठाया कि सरकार द्वारा संविधान का न तो नियमित रूप से प्रकाशन किया जा रहा है और न हीं उसे पर्याप्त संख्या में छापा जा रहा है। विधि और न्याय मंत्रालय, विधायी विभाग, आरटीआई
(संदर्भः दैनिक भास्कर)