रुसेन कुमार का मानना है कि किसी भी समाज में, जब व्यक्ति ‘कुछ न करने’ के सिद्धांत पर जीवन जीता है, तो वह धीरे-धीरे अपनी स्वतंत्रता खो देने के समान है।
आज की दुनिया में जहां हर कोई सफल होने के पीछे भाग रहा है, वहां कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि कुछ न करना ही असली स्वतंत्रता है। वे इसे जीवन की ऊंचाइयों के रूप में देखते हैं। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है? क्या निष्क्रियता या कुछ न करना असल में स्वतंत्रता है? या फिर यह एक प्रकार की गुलामी है? आइए चिंतन करते हैंः
जीवन में निष्क्रियता केवल बाहरी बंधन नहीं है, बल्कि यह एक मानसिक और आत्मिक गुलामी है। जब व्यक्ति किसी कारण से कोई कार्य नहीं करता, तो वह अपनी योग्यता, संभावना, और स्वतंत्रता को खोने लगता है। ऐसा व्यक्ति धीरे-धीरे अपनी स्वतंत्र सोच, कर्म करने की क्षमता, और समाज में योगदान देने की इच्छा से दूर हो जाता है। यह स्थिति केवल व्यक्तिगत स्तर पर ही नहीं, बल्कि समाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर भी हानिकारक हो सकती है। कुछ न करना गुलामी की जंजीरों में खुद को बांधने के समान है। कर्म ही वह शक्ति है जो इन जंजीरों को तोड़ने का सामर्थ्य रखती है। बिना कर्म के न तो स्वतंत्रता संभव है, न ही आत्मा का उत्थान।
कर्महीनता: एक मानसिक गुलामी
कर्म करना व्यक्ति के जीवन का स्वभाव है। जब हम कार्य नहीं करते, तो हम अपनी मानसिक और शारीरिक स्वतंत्रता को सीमित कर लेते हैं। किसी भी प्रकार की निष्क्रियता, चाहे वह आलस्य हो या डर, व्यक्ति को अपनी संभावनाओं से वंचित करती है। यह केवल शारीरिक सीमाएँ नहीं हैं जो हमें गुलाम बनाती हैं, बल्कि वह मानसिक स्थिति भी है जहाँ हम यह मानने लगते हैं कि हम कुछ कर ही नहीं सकते।
गुलामी का स्वरूप
गुलामी का परंपरागत अर्थ किसी के अधीन होकर जीवन जीने से है। लेकिन अगर हम गहराई से देखें, तो कुछ न करना भी गुलामी का एक सूक्ष्म रूप है। जब व्यक्ति अपने जीवन में कुछ करने की इच्छाशक्ति खो देता है, तो वह उन शक्तियों के अधीन हो जाता है, जो उसे सीमित करती हैं। ये शक्तियाँ आलस, निराशा, और निरुत्साह के रूप में हो सकती हैं। ऐसे में व्यक्ति मानसिक गुलामी का शिकार हो जाता है और उसकी रचनात्मकता, सोचने की क्षमता, और जीवन जीने का उद्देश्य धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है।
विकास की प्रक्रिया में बाधा
कर्महीनता विकास को रोकती है। जब व्यक्ति कुछ नहीं करता, तो वह न तो सीख सकता है, न ही आगे बढ़ सकता है। जीवन में कोई भी प्रगति, चाहे वह व्यक्तिगत हो या सामूहिक, केवल निरंतर प्रयास और कर्म से ही संभव होती है। इतिहास हमें सिखाता है कि समाज और राष्ट्र तभी प्रगति करते हैं जब उनके लोग सक्रिय होते हैं और किसी न किसी दिशा में कार्यरत रहते हैं।
सामाजिक जिम्मेदारी का अभाव
व्यक्ति का कर्म न केवल उसके व्यक्तिगत जीवन के लिए, बल्कि समाज के लिए भी महत्वपूर्ण है। एक निष्क्रिय व्यक्ति अपने समाज के विकास में योगदान नहीं दे पाता। समाज की प्रगति और विकास के लिए हर व्यक्ति का सक्रिय होना अनिवार्य है। जब लोग अपने हिस्से का काम नहीं करते, तो समाज की गति धीमी हो जाती है। निष्क्रियता समाज में असमानता, गरीबी और असंतोष को बढ़ावा देती है, जो अंततः समाज की संरचना को कमजोर कर सकती है।
कुछ न करना अपने आप को गुलामी की जंजीरों में बाँधने के समान है। कर्म न केवल जीवन का आधार है, बल्कि यह स्वतंत्रता का मार्ग भी है। – रुसेन कुमार
कर्म और स्वतंत्रता का संबंध
स्वतंत्रता का अर्थ केवल बाहरी बंधनों से मुक्ति नहीं है। वास्तविक स्वतंत्रता वह है जब व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार कर्म करता है और जीवन में आगे बढ़ता है। कुछ न करना अपने आप में एक प्रकार की आंतरिक गुलामी है, क्योंकि यह व्यक्ति को अपनी क्षमताओं और स्वतंत्रता से वंचित कर देता है। कर्म न करने से व्यक्ति का मानसिक विकास रुक जाता है और उसे अपने उद्देश्यों से दूर कर देता है।
बहुत से लोग मानते हैं कि कुछ न करना एक प्रकार की शांति का स्रोत है। वे मानते हैं कि जब हम किसी कार्य में नहीं उलझते हैं, तो हम अपने वास्तविक स्वरूप के साथ संपर्क में आते हैं। यह विचारधारा हमें स्थिरता का भ्रम देती है, जबकि यह स्थिरता हमें मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर बनाती है। वास्तव में, निष्क्रियता व्यक्ति को अपनी क्षमता से दूर कर देती है और एक अदृश्य बंधन में बांध देती है।
वास्तविक स्वतंत्रता कर्म में है। जब हम किसी उद्देश्य के साथ कर्म करते हैं, तो हम अपनी सामर्थ्य का विस्तार करते हैं। कर्म न केवल हमारी भौतिक स्वतंत्रता को बढ़ाता है, बल्कि यह हमें मानसिक रूप से भी मुक्त करता है। कर्म ही व्यक्ति को उस बंधन से मुक्त करता है, जो निष्क्रियता या ‘कुछ न करने’ से उत्पन्न होता है। इसलिए, कर्मशीलता को न अपनाना असल में आत्मा की गुलामी है।
कुछ न करने’ की निष्क्रियता, भले ही स्वतंत्रता का आभास दे, असल में उसे गुलामी की ओर धकेल देती है। असली स्वतंत्रता कर्म में है। जब तक व्यक्ति कर्मशील नहीं होता, तब तक वह मानसिक गुलामी में जी रहा होता है।
निष्क्रियता का परिणाम
जो व्यक्ति कर्म नहीं करता, वह केवल अपने आप को ही नहीं, बल्कि अपने समाज और राष्ट्र को भी नुकसान पहुंचाता है। कर्महीन व्यक्ति दूसरों पर निर्भर हो जाता है, और यह निर्भरता उसे गुलामी के और करीब ले जाती है। जो व्यक्ति अपनी क्षमताओं का उपयोग नहीं करता, वह अपने जीवन का उद्देश्य खो देता है। बिना कर्म के जीवन निरर्थक और दिशाहीन हो जाता है।
जो व्यक्ति निष्क्रिय होता है, वह जीवन की उन चुनौतियों से बचने की कोशिश करता है, जिनका सामना हर एक को करना पड़ता है। वह उस स्थिति में पहुँच जाता है, जहां उसे अपने अस्तित्व का भी पता नहीं रहता। यह अवस्था व्यक्ति को अपनी सोच और समझ से दूर कर देती है। जीवन में संघर्ष और चुनौतियाँ ही हमें सजीव बनाए रखती हैं। अगर हम इनसे बचते हैं, तो हम अपने अस्तित्व के मूल उद्देश्य से दूर हो जाते हैं और यह स्थिति वास्तविक गुलामी का रूप ले लेती है।
कर्म ही स्वतंत्रता का मार्ग
कर्म जीवन का सार है, और इसे छोड़ देना गुलामी के समान है। व्यक्ति तभी मुक्त हो सकता है जब वह अपनी क्षमताओं का पूर्ण उपयोग करे और जीवन में आगे बढ़े। कर्म ही वह मार्ग है जो व्यक्ति को अपनी सीमाओं से पार ले जाता है। यह उसे स्वतंत्र बनाता है, क्योंकि कर्म के माध्यम से ही वह अपने जीवन का नियंत्रण प्राप्त करता है और अपने उद्देश्यों की प्राप्ति करता है।
सार बातें
- जब तक व्यक्ति कर्मशील नहीं होता, तब तक वह मानसिक गुलामी में जी रहा होता है। जीवन का उद्देश्य केवल जीना नहीं, बल्कि सक्रिय रहकर उस दिशा में बढ़ना है, जहां कर्म और उद्देश्य का मिलन होता है। यही असली स्वतंत्रता है।
- कुछ न करना अपने आप को गुलामी की जंजीरों में बाँधने के समान है। कर्म न केवल जीवन का आधार है, बल्कि यह स्वतंत्रता का मार्ग भी है।
- जो व्यक्ति सक्रिय रहता है, वह न केवल अपने जीवन को सार्थक बनाता है, बल्कि अपने समाज और राष्ट्र के लिए भी योगदान देता है। कर्म से ही व्यक्ति आत्मनिर्भर, स्वतंत्र और संतुष्ट हो सकता है। इसलिए, जीवन में कुछ न कुछ करते रहना आवश्यक है, क्योंकि केवल कर्म ही हमें वास्तविक स्वतंत्रता प्रदान कर सकता है।
(रुसेन कुमार)